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अधिकारः ९]
समयसारः। जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होइ। तह जाणओ दु ण परस्स जाणओ जाणओ सो दु॥ ३५६ ॥ जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होइ । तह पासओ दु ण परस्स पासओ पासओ सो दु॥ ३५७ ॥ जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया दु सा होइ। तह संजओ दु ण परस्स संजओ संजओ सो दु॥ ३५८॥ जह से डिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया दु सा होदि। तह दसणं दु ण परस्स दंसणं दंसणं तं तु ॥ ३५९ ॥ एवं तु णिच्छयणयस्स भासियं णाणदंसणचरित्ते । सुणु ववहारणयस्स य वत्तव्यं से समासेण ॥ ३६०॥ .
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कुज्येष्वेतन्मृत्तिकावन्निश्चयेन तन्मयं न भवति इति निश्चयमुख्यत्वेन गाथापंचकं । यथैव च श्वेतमृत्तिका कुड्यं श्वेतं करोतीति व्यवहियते तथैव च ज्ञानं ज्ञेयं वस्तु जानात्येवं व्यवहारोऽ. स्तीति व्यवहारमुख्यत्वेन गाथापंचकं । एवं समुदायेन दशकं । तद्यथा;-यथा लोके श्वेतिका श्वेतमृत्तिका खटिका परद्रव्यस्य कुड्यादेनिश्चयेन श्वेतमृत्तिका न भवति तन्मयो न भवति
आगे इस निश्चय व्यवहार नयके कथनको दृष्टांतसे स्पष्ट करते हैं;-[ यथा ] जैसे [ सेटिका ] सफेदी करनेवाली कलई अथवा खडियामट्टी चूना आदि सफेद वस्तु वह [परस्य ] अन्य जो भीत आदि वस्तु उसको [ सेटिका तु न] सफेद करनेवाली है इससे खड़िया नहीं है वह तो भीतके बाहर भागमें रहती है भीतरूप नहीं होती [ सेटिका च सा भवति ] खड़िया तो आप खड़ियारूप ही है [ तथा ] उसीतरह [ ज्ञायकः तु] जाननेवाला है वह [ परस्य ज्ञायकः न ] परद्रव्यको जाननेवाला है इसकारणसे ज्ञायक नहीं है [ स तु ज्ञायकः ] आप ही ज्ञायक है [ यथा सेटिका ] जैसे खड़िया० [ तथा ] उसीतरह [ दर्शकस्तु] देखनेवाला [ परस्य दर्शकः न ] परद्रव्यको देखनेवाला होनेसे दर्शक नहीं है [स तु दर्शकः ] आप ही देखनेवाला है। [यथा सेटिका०] जैसे खड़िया०.... [तथा ] उसीतरह [ संयतस्तु] संयत [ परस्य संयतः न ]. परको त्यागनेसे संयत नहीं है [ स तु संयतः ] आप ही संयत है । [यथा सेटिका०] जैसे खड़िया०.... [ तथा] उसीतरह [दर्शनं तु] श्रद्धान [परस्य दर्शनं न ] परके श्रद्धानसे श्रद्धान नहीं है [ तत्तु दर्शनं ] आप ही श्रद्धान है [ एवं तु] ऐसा [ज्ञानदर्शनचारित्रे] दर्शन ज्ञान चारित्रमें [निश्चयनयस्य ] निश्चयनयका [भा. षितं ] कहा हुआ वचन है [च] तथा [व्यवहारनयस्य वक्तव्यं ] व्यवहार
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