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अधिकारः ९]
समयसार:
तथा परद्रव्यं जानाति ज्ञातापि स्वकेन भावेन ॥ ३६१ ॥ यथा परद्रव्यं सेटयति सेटिकात्मनः स्वभावेन । तथा परद्रव्यं पश्यति ज्ञातापि स्वकेन भावेन ॥ ३६२ ॥ यथा परद्रव्यं सेटयति सेटिकात्मनः स्वभावेन । यथा परद्रव्यं विजहाति ज्ञातापि खकेन भावेन ॥ ३६३ ॥ यथा परद्रव्यं सेटयति सेटिकात्मनः स्वभावेन ।
तथा परद्रव्यं श्रद्धत्ते ज्ञातापि स्वकेन भावेन ॥ ३६४ ॥
एवं व्यवहारस्य तु विनिश्चयो ज्ञानदर्शन चरित्रे । भणितोऽन्येष्वपि पर्यायेषु एवमेव ज्ञातव्यः || ३६५ ॥ दशकं ।
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सेटिकात्र तावच्छ्रेतगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यं तस्य तु व्यवहारेण चैत्यं कुड्यादिपरद्रव्यं । अथात्र कुड्यादेः परद्रव्यस्य चैत्यस्य श्वेतयित्री सेटिका किं भवति किं न भवतीति तदुभयतत्त्व संबंधो मीमांस्यते - यदि सेटिका कुड्यादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसंबंधे जीवति सेटिका कुड्यादेर्भवती कुड्यादिरेव भवेत्, एवं सति सेटिकायाः स्वद्रव्योच्छेदः । नच द्रव्यांतरसंक्रमस्य पूर्वमेव
व्यवहारनयस्य । कस्य संबंधिव्यवहारः ? से तस्य पूर्वोक्तज्ञानदर्शनचारित्रत्रयस्य । केन ? समासेण संक्षेपेण । इति निश्चयनयेन व्याख्यानमुख्यत्वेन सूत्रपंचकं गतं । अथ व्यवहारः कथ्यते - यथा येन प्रकारेण लोके परद्रव्यं कुड्यादिकं व्यवहारनयेन श्वेतयते श्वेतं करोति नच कुड्यादिपरद्रव्येण सह तन्मयी भवति । का कर्त्री ? श्वेतिका श्वेतमृत्तिका खटिका । केन कृत्वा श्वेतं करोति ? स्वकीयश्वेतभावेन । तथा तेन श्वेतमृत्तिकादृष्टांतेन परद्रव्यं घटादिकं
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हैं— श्वेत करने योग्य कुटी आदि परद्रव्यके श्वेत करनेवाली खडिया है या नहीं ? वहां जो खड़िया कुटी आदिककी है ऐसा मानो तो यह न्याय है कि जिसका जो हो वह वही है अन्य नहीं है । जैसे आत्माका ज्ञान हुआ आत्मा ही है । ऐसे परमार्थरूप संबंध के विद्यमान होनेपर खड़िया कुटी आदिकी यदि हो तो कुटी आदिक होनी चा हिये । ऐसा होनेपर खड़िया के स्वद्रव्यका नाश हो जायगा सो द्रव्यका उच्छेद होता नहीं । क्योंकि एक द्रव्यका अन्यद्रव्यरूप पलटने का पहले ही निषेध कर चुके हैं । इसकारण खंड़िया कुटी आदिकी नहीं हैं। यहां पूछते हैं— सेटिका कुटी आदिकी नहीं हैं तो किसकी है ? उसका उत्तर — सेटिका सेटिकाकी ही है । फिर पूछते हैं - वह दूसरी सेटिका कोनसी है कि जिसकी यह सेटिका है ? उसका उत्तर— दूसरी सेटिका तो नहीं है कि जिसकी यह सेटिका होसके । तो क्या है ? स्वस्वामि अंश ही अन्य है । वहां कहते हैं यहां निश्चयनयमें स्वस्वामि अंशके व्यवहारकर क्या साध्य १ कुछ भी नहीं । तो यह