Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 501
________________ ४८८ रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् । [ सर्वविशुद्धज्ञान "ज्ञानस्य संचेतनयैव नित्यं प्रकाशते ज्ञानमतीव शुद्ध । अज्ञानसंचेतनया तु धावन् arrer शुद्धि निरुणद्धि बंधः ॥ २२४ ॥ ॥ ३८३-३८६ ॥ वेदतो कम्मफल अप्पाणं कुणइ जो दु कम्मफलं । सो तं पुणोवि बंधइ वीयं दुक्खस्स अट्ठविहं ॥ ३८७ ॥ वेदतो कम्मफलं मए कर्य मुणइ जो दु कम्मफलं । सो तं पुणोवि बंधइ वीयं दुक्खस्स अट्ठविहं ॥ ३८८ ॥ वेदतो कम्मफलं सुहिदो दुहिदो य हवदि जो चेदा । सो तं पुणोवि बंध वीयं दुक्खस्स अट्ठविहं ॥ ३८९ ॥ सो चरितं हवदि चेदा स चेतयिता पुरुष एवाभेदनयेन निश्चयचारित्रं भवति । दु कस्मात् ? इति चेत् शुद्धात्मस्वरूपे चरणं चारित्रमिति वचनात् । एवं निश्चयप्रतिक्रमणप्रत्याख्यानालोचनाचारित्रव्याख्यानरूपेणाष्टमस्थले गाथाचतुष्टयं गतं ॥ ३८३।३८४|३८५।३८६ ॥ अथेंद्रियमनोविषयेषु रागद्वेषौ मिथ्याज्ञानपरिणत एव जीवः करोतीत्याख्याति; — ज्ञानाज्ञानभेदेन चेतना तावद् द्विविधा भवति । इयं तावदज्ञान चेतना गाथात्रयेण कथ्यते – उदयागतं शुभाशुभं कर्म वेदयन्ननुभवन् सन्नज्ञा निजीवः स्वस्थभावाद् भ्रष्टो भूत्वा मदीयं कर्मेति भणति । मया कृतं 1 ज्ञान अत्यंत शुद्ध हो प्रकाशता है— केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है तब संपूर्ण ज्ञान चेतना नाम पाता है । और अज्ञानरूप जो कर्म और कर्मफलरूप उपयोग उसको करना उसी तरफ एकाग्र हो अनुभव करना वह अज्ञान चेतना है । इससे कर्मका बंध होता है। वह ज्ञानकी शुद्धताको रोकता है ।। ३८३ से ३८६ तक ॥ - अब इस कथनको गाथासे कहते हैं; – [ यः तु ] जो आत्मा [ कर्मफलं वेदयमानः ] कर्मके फलको अनुभवता हुआ [ कर्मफलं आत्मानं करोति ] कर्मफलको आपरूप ही करता है मानता है [ सः ] वह [ पुनरपि ] फिर भी [दु:खस्य बीजं ] दुःखका बीज [ अष्टविधं तत् ] ज्ञानावरणादि आठ प्रकारके कर्मको [ बध्नाति ] बांधता है । [ यस्तु ] जो [ कर्मफलं वेदयमानः ] कर्मके फलको वेदता हुआ आत्मा [ कर्मफलं मया कृतं जानाति ] उस कर्मफलको ऐसा कि यह मैंने किया है [ स पुनरपि ० ] वह फिर भी०.... । [ यः चेतयिता ] जो आत्मा [ कर्मफलं वेदयमानः ] कर्मके फलको वेदता हुआ [ सुखितः च दुःखितः ] सुख और दुःखी [ भवति ] होता [ सः० ] वह चेतयिता ..... ।। टीका - ज्ञानसे अन्य जो अन्य भाव उसमें ऐसा अनुभव करे माने कि यह मैं हूं बह अज्ञान चेतना है । वह दो प्रकारकी है-कर्मचेतना कर्मफलचेतना । उनमें से ज्ञान सिवाय अन्य भावों में ऐसा अनुभवे ( माने ) कि इसको मैं करता हूं यह तो कर्म चेतना

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