Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 503
________________ ४९० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [ सर्वविशुद्धज्ञानयदहमकार्ष यदचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा · वाचा च कायेन चेति तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १ यदहमकार्ष यदचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा वाचा च तन्मे मिथ्या दुष्कृतमिति २ यदहमकार्ष यदचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च कायेन चेति तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३ यदहमकार्ष यदचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं वाचा च कायेन चेति तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४ यदहमकार्ष इति चेत् मदीयं कर्म मया कृतं कर्मेत्याद्यज्ञानभावेन-ईहापूर्वकमिष्टानिष्टरूपेण निरुपरागशुद्धात्मानुभूतिच्युतस्य मनोवचनकायव्यापारकरणं यत् , सा बंधकारणभूता कर्मचेतना भण्यते । उदयागतं कर्मफलं वेदयन् शुद्धात्मस्वरूपमचेतयन् मनोज्ञामनोजेंद्रियविषयनिमित्तेन यः सुखितो दुःखितो वा भवति स जीवः पुनरपि तदष्टविधं कर्म बध्नाति । कथंभूतं ? बीजं कारणं । कस्य ? दुःखस्य । इत्येकगाथया कर्मफलचेतना व्याख्याता । कर्मफलचेतना कोऽर्थः ? इति चेत् स्वस्थभावरहितेनाज्ञानभावेन यथा संभवं व्यक्ताव्यक्तस्वभावेनेहापूर्वकमिष्टानिष्टविकल्परूपेण करते हुए दूसरेको भला जाना था मनसे वचनसे कायसे वह मेरा पापकर्म मिथ्या होवे ॥ भावार्थ-पापकर्मको संसारका बीज जान हेय बुद्धि आई तब ममत्व छोड़ा यही मिथ्या करना है। ऐसे यह एक भंग हुआ । सो इसकी समस्या एसी कि कृत कारित अनुमोदना इन तीनका तो तीनका अंक स्थापन करना और मन वचन काय ये भी तीन इसमें लगाये इसलिये इसका दूसरा तिया स्थापन किया तब तेतीसका अंक हुआ सो इस भंगको तेतीसका है ऐसा नाम कहना ।३३।१। इसीतरह टीकामें अन्य भंगोंका संस्कृत पाठ है उनकी वचनिक करके लिखते हैं जो पापकर्म मैंने अतीत का. लमें किया, अन्यको प्रेरणाकर कराया और अन्य करते हुएको भला जाना मनकर वचनकर सो पापकर्म मेरा मिथ्या होवे । ऐसा दूसरा भंग है । यहां समस्या-कृत कारित अनुमोदनाका तो तिया ही है और मनवचन ये दो ही लगे काय नहीं लगा इसलिये दोका अंक स्थापन किया तब तिया दुवा ऐसे बत्तीसका भंग नाम हुआ । ३२ । २ । जो पापकर्म मैंने अतीतकाल में किया अन्यको प्रेरणाकर कराया और करते हुए अन्यको भला जाना मनकर कायकर वह पाप कर्म मेरा मिथ्या हो। ऐसा तीसरा भंग है । यहां कृत कारित अनुमोदनाका तो तिया ही हुआ और मनकर कायकर ऐसे दो लगे इसलिये तिया दूवा ऐसे इसका नाम बत्तीसका भंग हुआ यहां वचन न लगा । ३२।३। जो पापकर्म अतीतकालमें मैंने किया अन्यको प्रेरणाकर कराया और करते हुए अन्यको भी भला जाना वचनकर कायकर । वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा चौथा भंग है । यहां कृत कारित अनुमोदनाका तो तिया ही है और वचन काय दो लगे मन नहीं

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