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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [ सर्वविशुद्धज्ञानविमोहं तस्य नित्यामृतौघैः स्वयमयमभिषिचंश्चिच्चमत्कार एव ॥ २०६॥ वृत्त्यंशभेदतोऽत्यंतं वृत्तिमन्नाशकल्पनात् । अन्यः करोति भुंक्तेऽन्यः इत्येकांतश्चकास्तु मा ॥२०७॥" ३३२-३४४॥
केहिचि दु पजयहिं विणस्सए णेव केहिचि दु जीवो।
जह्मा तह्मा कुव्वदि सो वा अण्णो व णेयंतो ॥ ३४५ ॥ कर्मणः कर्ता न भवति शेषकाले कर्तेति व्याख्यानमुख्यतयांतरस्थलत्रयेण चतुर्थस्थले त्रयोदश सूत्राणि गतानि ॥ ३३२-३४४ ॥ केहिचिदु पन्जयेहिं विणस्सदे णेव केहिचिदु बौद्धमती क्षणिकवादी तो आत्मतत्त्वको क्षणिक कल्प कर अपने मनमें कर्ता भोक्तामें भेद मानते हैं अन्य कर्ता है अन्य भोगता है ऐसा मानते हैं, उनके अज्ञानको यह चैतन्य चमत्कार ही आप दूर करता है । क्या करता हुआ ? नित्यरूप अमृतके समूहोंकर सिंचता हुआ ॥ भावार्थ-क्षणिकवादी कर्ता भोक्तामें भेद मानते हैं जो पहले क्षणमें था वह दूसरे क्षणमें नहीं है ऐसा मानते हैं । आचार्य कहते हैं कि हम उनको क्या समझावें ? यह चैतन्य ही उनका अज्ञान दूर करेगा । जो कि अनुभव गोचर नित्यरूप है । पहले क्षण आप है वही दूसरे क्षणमें कहता है कि मैं पहले था वही हूं ऐसा स्मरण पूर्वक प्रत्यभिज्ञान उसकी नित्यता दिखलाता है । यहां बौद्धमती कहता है कि जो पहले क्षण था वही मैं दूसरे क्षणमें हूं यह मानना तो अनादि अविद्यासे भ्रम है यह मिटै तब तत्त्व सिद्ध हो, समस्त क्लेश मिटें । उसको कहते हैं कि हे बौद्ध ! तूने प्रत्यभिज्ञानको भ्रम बतलाया तो जो अनुभव गोचर है वह भ्रम ठहरा तो तेरा क्षणिक मानना भी अनुभवगोचर है यह भी भ्रम ठहरा, क्योंकि अनुभव अपेक्षा दोनों ही समान हैं । इसलिये सर्वथा एकांत मानना तो दोनों ही भ्रम हैं वस्तु स्वरूप नहीं है। हम (जैन) कथंचित् नित्यानित्यरूप वस्तुका स्वरूप कहते हैं वह सत्यार्थ है ॥ आगे ऐसे ही क्षणिक माननेवालेको युक्तिकर २०७ वें काव्यसे निषेधते हैं-वृत्त्यंश इत्यादि । अर्थ-क्षण क्षण प्रति अवस्था भेदोंको वृत्त्यंश कहते हैं उनके सर्वथा भेद जुदे २ वस्तु माननेसे अवस्थाओंका आश्रयरूप जो वृत्तिमान वस्तु उसके नाशकी कल्पना करके ऐसा मानते हैं कि करता दूसरा है और भोगता कोई दूसरा ही है । उसपर आचार्य कहते हैं कि ऐसा एकांत मत प्रकाशो। जहां अवस्थावान् पदार्थका नाश हुआ वहां अवस्थायें किसके आश्रय होके रहें ? इस तरह दोनोंका नाश आता है तव शून्यका प्रसंग होता है ॥ ३३२ से ३४४ तक ॥
अब अनेकांतको प्रगटकर इस क्षणिकवादको स्पष्ट करके निषेधते हैं;-[यस्मात] १ बौद्धरित्यर्थः।