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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
[ पुण्यपाप
भावत्वात्कर्म प्रतिषिद्धं । " संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि तत्कर्मैव मोक्षार्थिना संन्यस्ते सति तत्र का किल कथा पुण्यस्य पापस्य वा । सम्यक्त्वादिनिजस्वभावभवनान्मोक्षस्य हेतुर्भवन्नैष्कर्म्यप्रतिबद्धमुद्धतरसं ज्ञानं स्वयं धावति ॥ १ ॥ यावत्पाकमुपैति कर्मविरतिर्ज्ञानस्य सम्यङ् न सा कर्मज्ञानसमुच्चयोऽपि विहितस्तावन्न काचित्क्षतिः । किंत्वत्रापि समुल्लसत्यदिकषायो भवतीति जिनवरैः परिकथितः तस्योदयेन जीवोऽचरित्रो भवतीति ज्ञातव्यः । एवं मोक्षहेतुभूतो योऽसौ जीवो गुणी तत्प्रच्छादनकथनमुख्यत्वेन गाथात्रयं गतं इति सम्यक्त्वा - कषाय है ऐसा [ जिनवरैः ] जिनेंद्रदेवने [ परिकथितः ] कहा है [ तस्य उदयेन ] उसके उदयसे [ जीवः ] यह जीव [ अचारित्रः ] अचारित्री [ भवति ] हो जाता है [ ज्ञातव्यः ] ऐसा जानना चाहिये || टीका – सम्यक्त्वको मोक्षका कारणस्वभाव है उसका रोकनेवाला मिध्यात्व है सो आप ( स्वयं ) कर्म ही है उसके उदयसे ही ज्ञानको मिध्यादृष्टिपना है, ज्ञानको भी मोक्षका कारणस्वभाव है उसके रोक - नेवाला प्रगट अज्ञान है सो आप ( स्वयं ) कर्म ही है उसके उदयसे ज्ञानको अज्ञानीपना है, और चारित्रको भी मोक्षका कारणस्वभाव है उसका प्रतिबंधक प्रगट कषाय है सो आप (स्वयं) कर्म ही है उसके उदयसे ही ज्ञानके अचारित्रपना है । जिसकारण कर्मके, स्वयमेव मोक्षका कारण सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र उनका तिरोधायीपना है इसी - कारण कर्मका प्रतिषेध किया गया है । भावार्थ - ज्ञानके मोक्षका कारण नास्वभाव सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र हैं । इन तीनोंके प्रतिपक्षीकर्म मिध्यात्व अज्ञान कषाय ये तीन हैं इसलिये उन तीनोंको प्रगट नहीं होने देते । इसकारण कर्मको मोक्षके कारणोंका तिरोधायीभावपना है इसीलिये कर्मका प्रतिषेध है । अशुभ कर्मके मोक्षका कारणपना तो क्या है बाधकपना ही प्रसिद्ध है परंतु शुभकर्म भी बंधरूप ही है । इसकारण यह भी कर्म सामान्य प्रतिषेधरूप ही जानना ।। आगे इसी अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं— संन्यस्त इत्यादि । अर्थ — मोक्ष के चाहनेवालोंको यह समस्तकर्म ही त्यागने योग्य है इसतरह इस समस्त ही कर्मको छोड़ने से पुण्यपापकी तो क्या वात है कर्मसामान्य में दोनों ही आजाते हैं । इसतरह समस्त कर्मोंका त्याग होनेपर ज्ञान है वह सम्यक्त्व आदिक अपने स्वभावरूप होनेसे मोक्षका कारण हुआ कर्मरहित अवस्था से जिसका रस प्रतिबद्ध ( उद्धत ) है ऐसा अपनेआप दौड़ आता है । भावार्थ – कर्मको दूर करके ज्ञान, अपनेआप अपने मोक्षके कारणस्वभावरूप हुआ प्रगट होता है फिर उसे कौन रोक सकता है ? कोई नहीं | आगे आशंका उत्पन्न होती है कि अविरत सम्यग्दृष्टि आदिके जबतक कर्मका उदय रहता है तबतक ज्ञान मोक्षका कारण कैसे हो सकता है ? तथा कर्म और ज्ञान दोनों साथ किस तरह रहते हैं ? उसके समाधानका काव्य कहते हैं — यावत् इत्यादि । अर्थ - जब तक कर्मका उदय है और ज्ञानकी सम्यक् कर्मवि