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अधिकारः ६ ]
समयसारः ।
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अथ भावनिर्जरास्खरूपमावेदयति ;
दव्वे उवभुंजते णियमा जायदि सुहं च दुक्खं वा । तं सुहदुक्खमुदिणं वेददि अह णिज्जरं जादि ॥ १९४ ॥ द्रव्ये उपभुज्यमाने नियमाज्जायते सुखं च दुःखं वा । तत्सुखदुःखमुदीर्ण वेदयते अथ निर्जरां याति ॥ १९४ ॥ उपभुज्यमाने सति हि परद्रव्ये तन्निमित्तः सातासात विकल्पानतिक्रमणेन वेदनायाः प्रत्याख्यानक्रोधमानमायालोभोदयजनिता रागादयो न संतीत्यादि । किं च सम्यग्दृष्टेः संवरपूर्विका निर्जरा भवति, मिथ्यादृष्टेस्तु गजस्नानवत् बंधपूर्विका भवति । तेन कारणेन मिथ्यादृष्ट्यपेक्षया सम्यग्दृष्टिरबंधकः । एवं द्रव्यनिर्जराव्याख्यानरूपेण गाथा गता ॥ १९३ ॥ अथ भावनिर्जरा स्वरूपमाख्याति;—दव्वे उवभुज्जंते नियमा जायदि सुहं च दुक्खं च उदयागतद्रव्यकर्मणि जीवेनोपभुज्यमाने सति नियमात् निश्चयात् सातासातोदयवशेन सुखं दुःखं वा वस्तुस्वभावत एव जायते तावत् । तं सुहदुक्खमुदिष्णं वेददि निरुपरागस्वसंवित्तिभावेन उत्पन्नपारमार्थिकसुखाद्भिन्नं तत्सुखं वा दुःखं वा समुदीर्ण सत् सम्यग्दृष्टिर्जीवो रागद्वेषौ न कुर्वन् हेयबुद्ध्या वेदयति । न च तन्मयो भूत्वा, अहं सुखी दुःखीत्याद्यहमिति प्रत्ययेनानुभवति ।
तरह विरागी है सो इसके भोग उपभोग निर्जराके ही निमित्त हैं । कर्म उदय होता है वह अपना रस देकर झड़ जाता है उदय आनेके वाद द्रव्यकर्मकी सत्ता नहीं रहती निर्जरा ही होती है । सम्यग्दृष्टिका उस कर्म उदयसे राग द्वेष मोह नहीं है उदयमें आये को जानता है और फलको भी भोगता है वह राग द्वेष मोहके विना भोगता है इसलिये कर्मका आस्रव नहीं होता, आस्रवके विना उस विरागी सम्यग्दृष्टिके आगामी बंध नहीं होता । और जब बंध आगामी नहीं हुआ तब केवल निर्जरा ही हुई । इसकारण सम्यग्दृष्टि विरागीका भोगोपभोगनिर्जराके ही निमित्त कहा गया है । तथा पूर्वकमका द्रव्य उदय आकर झड़ जाना वही द्रव्यनिर्जरा है ॥ १९३॥
आगे भावनिर्जराका स्वरूप कहते हैं; - [ द्रव्ये च उपभुज्यमाने ] परद्रव्यको भोगने से [ सुखं वा दुःखं ] सुख अथवा दुःख [ नियमात् ] नियमसे [जायते ] होता है । [ उदीर्ण ] उदयमें आये हुए [ तत्सुखदुःखं ] उस सुखदुःखको [ वेदयते ] अनुभवता है भोगता है आस्वादता है [ अथ ] फिर वह आस्वाद देकर कर्मद्रव्य [ निर्जरां याति ] झड़ जाता है | निर्जरा होने बाद फिर वह कर्म नहीं आता ॥ टीका - परद्रव्यको भोगतेहुए जीवके सुखरूप अथवा दुःखरूप भाव नियमसे उदयरूप होते हैं उत्पन्न होते हैं । कैसे हैं भाव ? जिनको परद्रव्यनिमित्त कारण है । जिसकारण वेदना के साता तथा असाता इसतरह दो रूपपना ही है इन दोनों