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३७८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
[ बंधद्रव्यभावयोर्निमित्तनैमित्तिकभावं प्रथयन्नकर्तृत्वमात्मनो ज्ञापयति । तत एतत् स्थितं, परद्रव्यं निमित्तं नैमित्तिका आत्मनो रागादिभावाः । यद्येवं नेष्येत तदा द्रव्याप्रतिक्रमणाप्रत्याख्यानयोः कर्तृत्वनिमित्तत्वोपदेशोऽनर्थक एव स्यात् तदनर्थकत्वे त्वेकस्यैवात्मनो रागादिभावनिमित्तत्वापत्तौ नित्यकर्तृत्वानुषंगान्मोक्षाभावः प्रसजेच । ततः परद्रव्यमेवात्मनो रागादिभावनिमित्तमस्तु । तथासति तु रागादीनामकारक एवात्मा, तथापि यावन्निमित्तभूतं द्रव्यं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे च तावन्नैमित्तिकभूतं भावं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे च, यावत्तु भावं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे तावत्कतॆव स्यात् । यदैवं निमित्तभूतं द्रव्यं स च हेयस्याशेषस्य नरकादिदुःखस्य कारणत्वाद्धेयः । तस्य बंधस्य विनाशार्थ विशेषभावनामाह-सहजशुद्धज्ञानानंदैकस्वभावोऽहं, निर्विकल्पोहं, उदासीनोहं, निरंजननिजशुद्धात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानरूपनिश्चयरत्नत्रयात्मकनिर्विकल्पसमाधिसंजातवीतरागसहजानंदरूपसुखानुभूतिमात्रलक्षणेन स्वसंवेदनज्ञानेन संवेद्यो गम्यः प्राप्यः, भरितावस्थोऽहं, राग-द्वेष-मोह-क्रोधमान-माया-लोभ-पंचेंद्रियविषयव्यापार, मनोवचनकायव्यापार-भावकर्म-नोकर्म-ख्याति-पूजा-लाभ-दृष्टश्रुतानुभूतभोगाकांक्षारूपनिदानमायामिथ्याशल्यत्रयादिसर्वविभावपरिणामर
हो तबतक रागादिभावोंका कर्ता ही है । जिससमय रागादिभावोंका निमित्तभूत द्रव्योंका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान करता है उसीसमय नैमित्तिकभूत रागादिभावोंका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान होता है । तथा जिससमय इन भावोंका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान हुआ उससमय साक्षात् अकर्ता ही है ॥ भावार्थ-प्रतिक्रमण प्रत्याख्यानका द्रव्यभावके भेदसे दो तरहका उपदेश है सो यहां शुद्धनय प्रधान कथन है इसलिये निषेध प्रधानकर वर्णन है । अप्रतिक्रमण अप्रत्याख्यान कहते हैं जो अतीतकालमें परद्रव्यका ग्रहण किया उसको अब अच्छा समझे उसका संस्कार रहे ममत्व रहे वह तो द्रव्य अप्रतिक्रमण है और उस परद्रव्यके ग्रहणके निमित्तसे रागादिकभाव जो हुए थे उनको वर्तमानमें अच्छा समझे उनसे ममत्वसंस्कार रहे वह भाव अप्रतिक्रमण है। तथा
आगामी कालमें परद्रव्यकी वांछाकर ममत्व रखे वह द्रव्य अप्रत्याख्यान है और उसके निमित्तसे आगामी कालमें होनेवाले रागादिभावोंकी वांछा रखना ममत्व रखना वह भाव अप्रत्याख्यान है । सो यह द्रव्य अप्रतिक्रमण भाव अप्रतिक्रमण तथा द्रव्य अप्रत्याख्यान भाव अप्रत्याख्यान ऐसे दो प्रकारका उपदेश है वह द्रव्य भावके निमित्तनैमित्तिक भावको जनाता है। परद्रव्य तो निमित्त है और नैमित्तिक रागादिकभाव हैं । सो जबतक निमित्तभूत परद्रव्यका अप्रतिक्रमण अप्रत्याख्यान इस आत्माके है तबतक तो रागादिभावोंका अप्रतिक्रमण अप्रत्याख्यान है और जबतक रागादिभावोंका अप्रतिक्रमण अप्रत्याख्यान है तबतक रागादिभावोका कर्ता ही है। तथा जिससमय