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अधिकारः ७]
समयसारः। अज्ञानमेतदधिगम्य परात्परस्य पश्यंति ये मरणजीवितदुःखसौख्यं । कर्माण्यहंकृतिरसेन चिकीर्षवस्ते मिथ्यादृशो नियतमात्महनो भवंति ॥ १६९ ॥” २५४।२५५।२५६॥
जो मरइ जो य दुहिदो जायदि कम्मोदयेण सो सव्वो। तह्मा दु मारिदो दे दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा ॥ २५७ ॥ जो ण मरदि ण य दुहिदो सोवि य कम्मोदयेण चेव खलु।
तह्मा ण मरिदो णो दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा ॥ २५८॥ ज्ञात्वा मनसि हर्षविषादपरिणामेन गर्वं न करोति इति । एवं परजीवानां जीवितमरणं सुखदुःखं करोमीति व्याख्यानमुख्यतया गाथासप्तकेन द्वितीयस्थलं गतं ॥२५४।२५५।२५६॥ अथ परो जन परस्य निश्चयेन जीवितमरणसुखदुःखं करोतीति योसौ मन्यते स बहिरात्मेति प्रतिपादयति;जो मरदि जो य दुहिदो जायदि कम्मोदयेण सो सव्वो यो म्रियते यश्च दुःखितो भवति स सर्वोऽपि कर्मोदयेन जायते तह्मा दु मारिदो दे दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा तस्मात्कारणात् मया मारितो दुःखीकृतश्चेति तवाभिप्रायोयं न खलु मिथ्या ? किंतु मिथ्यैव । जो ण मरदि ण य दुहिदो सोवि य कम्मोदयेण खलु जीवो दृढ करते हुए आगेके कथनकी सूचनिकारूप १६९ वां काव्य कहते हैं-अज्ञान इत्यादि । अर्थ-ऐसा पूर्वकथित मानना अज्ञान है उसको प्राप्त हुए जो पुरुष परसे परका मरण जीवित दुःख सुख होना देखते हैं मानते हैं वे पुरुष "मैं इन कर्मों को करता हूं" ऐसे अहंकाररूप रसकर कर्मोंके करनेके इच्छक होते हैं कर्म करनेकी मारने जिवानेकी सुखी दुःखी करनेकी वांछा करते हैं वे ही नियमसे मिथ्यादृष्टि हैं और अपनेसे ही अपना घात करनेवाले होते हैं । भावार्थ-जो परको मारने जिवाने तथा सुखदुःख करनेका अभिप्राय करते हैं वे मिथ्यादृष्टि हैं। वे अपने स्वरूपसे च्युत हुए रागी द्वेषी मोही होके अपने आप अपना घात करते हैं इसलिये हिंसक हैं ॥ २५४।२५५।२५६॥
आगे इसी अर्थको गाथामें कहते हैं;-[ यः म्रियते ] जो मरता है [च यः दुःखितो जायते ] और जो दुःखी होता है [ सः] वह [ सर्वः ] सब [कर्मोंदयेन ] कर्मके उदयकर होता है [तस्मात् तु] इसलिये [ ते ] तेरा [मारितः च दुःखितः इति ] "मैं मारा मैं दुःखी किया गया” ऐसा अभिप्राय [खलु न मिथ्या ] क्या मिथ्या नहीं है ? मिथ्या ही है । तथा [ यः न म्रियते ] जो नहीं मरता [च न दुःखितः ] और न दुःखी होता [ सोपि च ] वह भी [कर्मोंदयेन चैव खलु ] कर्मके उदयकर ही होता है [ तस्मात् ] इसलिये तेरा यह अभिप्राय है [ न मारितः नो दुःखितश्च इति ] "कि मैं मारा नहीं गया और न
१ 'सोविय कम्मोदयेण खलु जीवो' पाठोयं तात्पर्यवृत्तौ।