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२४८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
[ आस्रवयतः सदवस्थायां तदात्वपरिणीतबालस्त्रीवत् पूर्वमनुपभोग्यत्वेऽपि विपाकावस्थायां प्राप्तयौवनपूर्वपरिणीतस्त्रीवत् उपभोग्यप्रायोग्यं पुद्गलकर्मद्रव्यप्रत्ययाः संतोऽपि कर्मोदयकार्यजी
व्वणिवद्धा दु पच्चया संति सम्मदिहिस्स सर्वे पूर्वनिबद्धा द्रव्यप्रत्ययाः संति तावत्सम्यग्दृष्टेः । उवओगप्पाओगं बंधते कम्मभावेण यद्यपि विद्यते तथाप्युपयोगेन प्रायोग्यं तत्कालोदयप्रायोग्यकर्मतापन्नं कर्म बनंति । केन- कृत्वा ? भावेन रागादिपरिणामेन, नचास्तित्वमात्रेण बंधकारणं भवंतीति । संतावि णिरवभोजा बाला इच्छी जहेव
ऐसे प्रश्नका श्लोक है—सर्वस्या इत्यादि । अर्थ-ज्ञानीके सभी द्रव्यास्रवकी संततिको जीनेसे ज्ञानी नित्य ही निरास्रव है ऐसा क्यों कहा ? ऐसी शिष्यकी आशंकारूप बुद्धि है उसके उत्तरकी गाथा कहते हैं;-[सम्यग्दृष्टेः ] सम्यग्दृष्टिके [ सर्वे ] सभी [ पूर्वनिबद्धाः तु] पूर्व अज्ञानअवस्थामें बांधे [प्रत्ययाः ] मिथ्यात्वादि आस्रव [संति ] सत्तारूप मौजूद हैं वे [ उपयोगप्रायोग्यं ] उपयोगके प्रयोग करनेरूप जैसे हो वैसे [कर्मभावेन ] उसके अनुसार कर्म भावकर [ बन्नति ] आगामी बंधको प्राप्त होते हैं [ निरुपभोग्यानि ] और जो पूर्वबंधे प्रत्यय उदयविना आये भोगने योग्यपनेसे रहित [ भूत्वा ] होकर तिष्ठ रहे हैं वे फिर [तथा बध्नंति ] आगामी उसतरह बंधते हैं [ यथा ] जैसे [ ज्ञानावरणादि भावैः] ज्ञानावरणादिभावोंकर [सप्ताष्टविधानि ] सात आठ प्रकार फिर [उपभोग्यानि] भोगेन योग्य [ भवंति ] हो जायँ [तु] और [निरुपभोग्यानि संति] वे पूर्वबंधे प्रत्यय सत्तामें ऐसे हैं [ यथा] जैसे [ इह ] इसलोकमें [पुरुषस्य] पुरुषके [बाला स्त्री ] बालिका स्त्री भोगने योग्य नहीं होती [ तानि ] और वेही [उप भोग्यानि ] भोगने योग्य होते हैं तब [ बध्नाति ] पुरुषको बांधते हैं [यथा ] जैसे [ तरुणी स्त्री ] वही बाला स्त्री जवान होजाय तब [ नरस्य ] पुरुषको बांधलेती है अर्थात् पुरुष उसके आधीन हो जाता है यही बंधना है। [ एतेन तु कारणेन ] इसीकारणसे [ सम्यग्दृष्टिः ] सम्यग्दृष्टि [ अबंधकः ] अबंधक [भणितः] कहा गया है क्योंकि [आस्रवभावाभावे] आस्रवभाव जो राग द्वेष मोह उनका अभाव होनेसे [प्रत्ययाः] मिथ्यात्वआदि प्रत्यय सत्तामें होनेपर भी [बंधकाः ] आगामी कर्मबंधके करनेवाले [न ] नहीं [ भणिताः ] कहे गये हैं। टीका-जिसकारण ऐसें है कि जैसे तत्कालकी विवाहित बालस्त्री पहले बालकअवस्थामें पुरुषके भोगने योग्य नहीं होती फिर वही स्त्री जब तरुणी होजाय तब यौवनअवस्थामें भोगने योग्य होती है तब पुरुष भी उसके आधीन होजाता है । उसीतरह पहले बांधे कर्म जबतक सत्ताअवस्थामें हैं तबतक भोगने योग्य नहीं होते फिर वे ही