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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । एकस्य शांतो न तथा परस्य चितिद्वयोविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्सास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥ ८३ ॥ एकस्य नित्यो न तथा परस्य चितिद्वयोविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिचिदेव ॥ ८४ ॥ एकस्य वाच्यो न तथा परस्य चितिद्वयोाविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥ ८५ ॥ एकस्य नाना न तथा परस्य चितिद्वयोविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिचिदेव ॥ ८६ ॥ एकस्य चेत्यो न तथा परस्य चितिद्वयोर्कीविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥ ८७ ॥ एकस्य दृश्यो न तथा परस्य चितिद्वयोाविति पक्षपातौ । यस्तत्त्वल्परहितं चिदानंदैकस्वभावं जीवस्वरूपं भवतीति । तथा चोक्तं
य एवमुक्त्वा नयपक्षपातं स्वरूपगुप्ता निवसंति नित्यं ।
विकल्पजालच्युतशांतचित्तास्त एव साक्षादमृतं पिबंति ॥ ६८ ॥ वह पक्षपातरहित है उसके पक्षपात नहीं है जो चित् है वह चित् ही है । एकस्य दुष्टो इत्यादि १७ काव्योंका अर्थ-एक नयके तो द्वेषी है ऐसा पक्ष है और दूसरी नयके द्वेषी नहीं है । ऐसे ये चैतन्यमें दोनों नयोंके दो पक्षपात हैं ॥ एक नयके कर्ता है दूसरी नयके कर्ता नहीं है ऐसे ये चैतन्यमें दोनों नयोंके दो पक्षपात हैं ॥ एक नयके भोक्ता है दूसरी नयके भोक्ता नहीं है । ये चैतन्यमें दो नयोंके दो पक्षपात हैं । एक नयके जीव है दूसरी नयके जीव नहीं है । ये चैतन्यमें दोनों नयोंके दो पक्षपात हैं। एक नयके सूक्ष्म है दूसरी नयके सूक्ष्म नहीं है ऐसे ये चैतन्यमें दोनों नयोंके दो पक्षपात हैं ॥ एक नयके हेतु है दूसरी नयके हेतु नहीं है ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके कार्य है दूसरी नयके कार्य नहीं है ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके भावरूप है दूसरी नयके अभावरूप है ये चैतन्यमें०॥ एक नयके एक है दूसरी नयके अनेक है ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके सांत ( अंतसहित ) है दूसरी नयके अंतसहित नहीं है ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके नित्य है दूसरी नयके अनित्य है ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके वाच्य ( वचनसे कहने में आये) है दूसरी नयके वचनगोचर नहीं है ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके नानारूप है दूसरी नयके नानारूप नहीं है ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके चेत्य अर्थात् जानने योग्य है दूसरी नयके चेतने योग्य नहीं है ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके दृश्य ( देखने योग्य) है दूसरीके देखनेमें नहीं आता ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके वेद्य (वेदने योग्य ) है दूसरीके वेदनेमें नहीं आता, ये चैतन्यमें० ॥ एक नयके वर्तमान प्रत्यक्ष है दूसरीके नहीं ये दोनों नयोंके चैतन्यमें दो पक्षपात हैं । इसतरह चैतन्य सामान्यमें ये सब पक्षपात हैं । जो तत्त्ववेदी है वह स्वरूपको यथार्थ अनुभव करनेवाला है उसका चिन्मा