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अधिकारः ३ ] समयसारः ।
२१५ वाभेदादेकं कर्म । शुभोऽशुभो वा फलपाकः केवलपुद्गलमयत्वादेकस्तदेकत्वे सत्यनुभवाभेदादेकं कर्म । शुभाशुभौ मोक्षबंधमार्गों तु प्रत्येकं केवलजीवपुद्गलमयत्वादनेकौ तदनेकत्वे सत्यपि केवलपुद्गलमयबंधमार्गाश्रितत्वेनाश्रयाभेदादेकं कर्म ॥ हेतुस्वभावानुभवासंसारे प्रवेशयति । हेतुस्वभावानुभवबंधरूपाश्रयाणां निश्चयेनाभेदात् कर्मभेदो नास्तीति । तथाहिहेतुस्तावत्कथ्यते, शुभाशुभपरिणामो हेतुः । स च शुद्धनिश्चयेनाशुभत्वं प्रति, एक एव द्रव्यं पुण्यपापरूपं पुद्गलद्रव्यस्वभावः । सोऽपि निश्चयेन पुद्गलद्रव्यं प्रति, एक एव तत्फलं सुखदुःखरूपं स च फलरूपानुभवः । सोप्यात्मोत्थनिर्विकारसुखानंदापेक्षया दुःखरूपेणैक एव आश्रयस्तु शुभाशुभबंधरूपः । सोऽपि बंधं प्रत्येक एव इति हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां सदाप्यभेदात् । यद्यपि अशुभके भेदसे दो भेदरूप है क्योंकि शुभ और अशुभ जो जीवके परिणाम हैं वे उसको निमित्त हैं उसपनेसे कारणके भेदसे भेद है, शुभ और अशुभ जो पुद्गलके परिणाम उनमय होनेसे स्वभावके भेदसे भेद है, अथवा कर्मका जो शुभ अशुभ फल उसके रसपनेसे स्वादके भेदसे भेद है तथा शुभअशुभ जो मोक्षका तथा बंधका मार्ग उसका आश्रितपना होनेपर आश्रयके भेदसे भेद है। इस प्रकार इन चारों हेतुओंसे कोई कर्म शुभ है कोई कर्म अशुभ है ऐसा किसीका पक्ष है उसका निषेध करनेवाला दूसरा पक्ष है। यही कहते हैं जो शुभ अथवा अशुभ जीवका परिणाम है वह केवल अज्ञानमयपनेसे एक ही है उसके एक होनेपर कारणका अभेद है इसलिये कर्म एक ही है । तथा शुभ अथवा अशुभ पुद्गलका परिणाम है वह केवल पुद्गलमय है इसलिये एक ही है । उसके एक होनेपर स्वभावके अभेदसे भी कर्म एक ही है । शुभ अथवा अशुभ जो कर्मके फलका रस वह केवल पुद्गलमय ही है उसके एक होनेपर आस्वादके अभेदसे भी कर्म एक ही है । शुभ अथवा अशुभ मोक्षका और बंधका मार्ग ये दोनों जुदे हैं केवल जीवमय तो मोक्षका मार्ग है और केवल पुद्गलमय बंधका मार्ग है । वे अनेक हैं एक नहीं हैं उनको एक न होनेपर भी केवल पुद्गलमय जो बंधमार्ग उसके आश्रितपनेकर आश्रयके अभेदसे कर्म एक ही है ॥ भावार्थ-कर्ममें शुभ अशुभके भेदकी पक्ष चार हेतुओंसे कही है उसमें शुभका हेतु तो जीवका शुभ परिणाम है वह अरहंतादिमें भक्तिका अनुराग, जीवोंमें अनुकंपा परिणाम, और मंदकषायसे चित्तकी उज्वलता इत्यादि हैं । तथा अशुभका हेतु जीवके अशुभ परिणाम; तीव्र क्रोधादिक, अशुभ लेश्या, निर्दयपना, विषयासक्तपना, देव गुरु आदि पूज्य पुरुषोंसे विनयरूप नहीं प्रवर्तना इत्यादिक हैं। इसलिये इन हेतुओंके भेदसे कर्म शुभाशुभरूप दोप्रकारके हैं । और शुभअशुभ पुद्गलके परिणामके भेदसे स्वभावका भेद है, शुभ द्रव्यकर्म तो सातावेदनीय शुभआयु शुभनाम शुभगोत्र हैं तथा अशुभ चार घातियाकर्म, असातावेदनीय, अशुभआयु, अशुभनाम, अशुभगोत्र ये हैं । इनके उदयसे प्राणीको इष्ट अनिष्ट ( अच्छी बुरी) सामग्री मिलती है