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अधिकारः ३ ]
समयसारः ।
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तथा किलात्माऽरागो ज्ञानी स्वस्य बंधाय उपसर्पतीं मनोरमाममनोरमां वा सर्वामपि कर्मप्रकृतिं तत्त्वत्तः कुत्सितशीलां विज्ञाय तया सह रागसंसग प्रतिषेधयति ॥ १४८॥१४९॥ अथोभयकर्महेतुं प्रतिषेध्यं चागमेन साधयति ;
रतो बंधदि कम्मं मुंचदि जीवो विरागसंपत्तो । एसो जिणोवदेसो तह्मा कम्मेसु मा रज्ज ॥ १५० ॥ रक्तो नाति कर्म मुच्यते जीवो विरागसम्प्राप्तः ।
एष जिनोपदेशः तस्मात् कर्मसु मा रज्यस्व ॥ १५० ॥ यः खलु रक्तोऽवश्यमेव कर्म बनीयात् विरक्त एव मुच्येतेत्ययमागमः स सामान्येन रक्तत्वनिमित्तत्वाच्छुभमशुभमुभयकर्माविशेषेण बंधहेतुं साधयति तदुभयमपि कर्म प्रतिषे
इह जगति वर्जयन्ति तत्संसर्ग वचनकायाभ्यां परिहरन्ति मनसा रागं च तस्य कर्मणः । के ते ? समस्तद्रव्यभावगतपुण्यपापपरिणामपरिहारपरिणता भेदरत्नत्रयलक्षण निर्विकल्पसमाधिस्वभावरताः साधव इति दाष्टतः ॥ १४८ | १४९ ॥ अथोभयकर्म शुद्धनिश्चयेन केवलं बंधहेतुं न केवलं बंधहेतुं प्रतिषेध्यं चागमेन साधयति ; -रत्तो बंधदि कम्मं मुंचदि जीवो विरागसंपण यस्मात् कारणात् रक्तः स कर्माणि बध्नाति । मुच्यते जीवः कर्मजनितभावेषु विरागसंपन्नः एसो जिणोवदेसो तमा कम्मेसु मा रज एष प्रत्यक्षीभूतो जिनोपदेशः कर्ता, किं करोति ? उभयं कर्म बंधहेतुं न केवलं बंधहेतुं प्रतिषेध्यं हेयं च कथयति तस्मात्कारणात्
और प्रवीण ( चतुर ) हाथी होवे तो उससे राग संसर्ग नहीं करता उसीतरह कर्म प्रकृतियोंको अच्छी समझ अज्ञानी जन उनसे राग तथा संसर्ग करता है तव बंध में पड़ संसारके दुःख भोगता है और जो ज्ञानी होवै तो उनसे संसर्ग तथा राग कभी नहीं
करता ।। १४८ ॥ १४९ ॥
आगे शुभ तथा अशुभ दोनों ही कर्म बंधके कारण है और निषेध करने योग्य हैं। यह बात आगमसे साधते हैं; - [ रक्तः ] रागी [जीवः ] जीव तो [ कर्म ] कर्मोको [ बध्नाति ] बांधता है [विरागसंप्राप्तः ] तथा वैराग्यको प्राप्त हुआ जीव [मुच्यते ] कर्म से छूट जाता है [ एषः ] यह [ जिनोपदेशः ] जिन भगवानका उपदेश है [तस्मात् ] इस कारण भो भव्यजीको तुम [ कर्मसु ] कर्मों में [ मा रज्यख ] प्रति मतकरो रागी मत होओ ॥ टीका - जो रागी है वह अवश्य कमोंको बांधता ही है और जो विरक्त है वही कर्मोंसे छूटता है ऐसा यह आगमका वचन है यह वचन, सामान्य से रागीपनेके निमित्त से कर्म शुभ अशुभ ये दोनों हैं उनको अविशेषकर बंधका कारण साधा है इसलिये उन दोनों ही कर्मोंको निषेधते हैं । इसी अर्थ का कलशरूप काव्य कहते हैं-कर्म इत्यादि । अर्थ — सर्वज्ञदेव सभी शुभ तथा अशुभ कर्मों को सामान्यसे बंधका कारण कहते हैं इसीलिये सभी कर्मों का निषेध किया है । मोक्षका कारण एक ज्ञान ही कहा है । अब