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२१६ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
[ पुण्यपापश्रयाणां सदाप्यभेदान्न हि कर्मभेदः । तद्वंधमार्गाश्रितमेकमिष्टं स्वयं समस्तं खलु बंधहेतुः ॥१३०॥" १४५॥ अथोभयं कर्माविशेषेण बंधहेतुं साधयति;
सौवणियमि णियलं बंधदि कालायसं च जह पुरिसं । बंधदि एवं जीवं सुहमसुहं वा कदं कम्मं ॥ १४६ ॥
सौवर्णिकमपि निगलं बध्नाति कालायसमपि च यथा पुरुष ।
बन्नात्येवं जीवं शुभमशुभं वा कृतं कर्म ॥ १४६ ॥ व्यवहारेण भेदोऽस्ति तथापि निश्चयेन शुभाशुभकर्मभेदो नास्ति इति व्यवहारवादिनां पक्षो बाध्यत एव ॥ १४५ ॥ अथोभयं कर्म, अविशेषेण बंधकारणं साधयति;-यथा सुवर्णनिगलं लोहनिगलं च अविशेषेण पुरुषं बध्नाति तथा शुभमशुभं वा कृतं कर्म अविशेषेण जीवं बध्नातीति । किंच । भोगाकांक्षानिदानरूपेण रूपलावण्यसौभाग्यकामदेवेन्द्राहमिंद्रख्यातिपूजालाभासो ये पुद्गलके स्वभाव हैं । इनके भेदसे कर्ममें स्वभावका भेद है । शुभअशुभ अनुभवके भेदसे भेद है शुभका अनुभव तो सुखरूप स्वाद है और अशुभका दुःखरूप स्वाद है। शुभाशुभ आश्रयके भेदसे भेद है शुभका तो आश्रय मोक्षमार्ग है और अशुभका आश्रय बंधमार्ग है। ऐसा तो भेदपक्ष है । अब इस भेदका निषेधपक्ष कहते हैं जो शुभ
और अशुभ दोनों जीवके परिणाम अज्ञानमय हैं इसलिये दोनोंका एक अज्ञान ही कारण है इसलिये हेतुके भेदसे कर्ममें भेद नहीं हैं । शुभअशुभ ये दोनों पुद्गलके परिणाम हैं इस लिये पुद्गलपरिणामरूप स्वभाव भी दोनोंका एक ही है इसकारण स्वभावके अभेदसे भी कर्म एक ही है । शुभाशुभ फल सुखदुःखरूप स्वाद भी पुद्गलमय ही है इसलिये स्वादके अभेदसे भी कर्म एक ही है । शुभअशुभ मोक्षबंधमार्ग कहे हैं वहां भी मोक्षमार्ग तो केवल ( एक ) जीवका ही परिणाम है और बंधमार्ग केवल एक पुदलका ही परिणाम है आश्रय भिन्न भिन्न हैं इसलिये बंधमार्गके आश्रयसे भी कर्म एक ही है। ऐसे यहां कर्मके शुभाशुभ भेदके पक्षको गौणकर निषेध किया क्योंकि यहां अभेदपक्ष प्रधान है सो अभेदपक्षकर देखाजाय तो कर्म एक ही है दो नहीं हैं । अब इसी अर्थको लेकर कलशरूप काव्य कहते हैं-हेतु इत्यादि । अर्थ हेतु स्वभाव अनुभव आश्रय इन चारोंके सदाकाल ही अभेदसे कर्ममें भेद नहीं है इसलिये बंधके मार्गको आश्रयकर कर्म एक ही माना है क्योंकि शुभरूप तथा अशुभरूप दोनों ही आप ( स्वयं ) निश्वयसे बंधके ही कारण हैं ॥ १४५ ॥ __ आगे शुभअशुभ दोनों कर्मोंको ही अविशेष ( अभेद )कर बंधके कारण साधते हैं;-[यथा ] जैसे [ कालायसं निगलं ] लोहेकी बेड़ी [ पुरुषं बध्नाति ] पुरुषको बांधती है [ अपि] और [ सौवर्णिकं ] सुवर्णकी [ अपि ] भी बांधती