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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । मिथ्यादृष्टय एवेति सिद्धांतः । भावैकद्रव्येण द्रव्यद्वयपरिणामः क्रियमाणः प्रतिभातु । यथा किल कुलालः कलशसंभवानुकूलमात्मव्यापारपरिणाममात्मनोऽव्यतिरिक्तमात्मनोव्यक्तिरिक्ततया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभाति न पुनः कलशकारणाहंकारनिर्भरोपि स्वव्यापारानुरूपं मृत्तिकायाः कलशपरिणामं मृत्तिकायाः अव्यतिरिक्तमृत्तिकायाः अव्यतिरिक्ततया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभाति । तथात्मापि पुद्गलकर्मपरिणामानुकूलमज्ञानादात्मपरिणाममात्मनोऽव्यतिरिक्तमात्मनो व्यतिरिक्ततया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभातु मा पुनः पुद्गलपरिणामकरणाहंकारनिर्भरोपि चाचेतनं जडस्वरूपं द्वयमप्युपादानरूपेण कुर्वति तेण दु मिच्छादिही दोकिरियावादिणो हुँति ततस्तेन कारणेन चेतनाचेतनक्रियाद्वयवादिनः पुरुषाः मिथ्यादृष्टयो भवंतीति । तथाहि-यथा कुंभकारः स्वकीयपरिणाममुपादानरूपेण करोति तथा घटमपि यद्युपादानरूपेण करोति तदा कुंभकारस्याचेतनत्वं घटरूपत्वं प्राप्नोति । घटस्य वा चेतनकुंभकाररूपत्वं प्राप्नोतीति । तथा जीवोपि यद्युपादानरूपेण पुद्गलद्रव्यकर्म करोति तदा जीवस्याचेतनत्मभावं ] आत्माके भावको [च ] और [ पुद्गलभावं ] पुद्गलके भावको [दौ अपि ] दोनोंहीको आत्मा [कुर्वति ] करता है ऐसा कहते हैं [ तेन तु] इसी . कारण [ द्विक्रियावादिनो] दो क्रियाओंको एकके ही कहनेवाले [मिथ्यादृष्टयः] मिथ्यादृष्टि ही [भवंति] हैं । टीका-निश्चयसे आत्माके परिणामका और पुद्गलके परिणामका करता आत्माको जो मानते हैं दोनों क्रियायें एकके ही कहनेवाले हैं वे मिथ्यादृष्टि ही हैं ऐसा सिद्धांत है । सो एकद्रव्यकर दो परिणाम किये गये मत प्रतिभासो। जैसे कुंभार घड़ेके होनेके अनुकूल अपना व्यापाररूप हस्तादिक क्रिया तथा इच्छारूप परिणाम अपनेसे अभिन्न तथा अपनेसे अभिन्न परिणतिमात्र क्रियाकर किये हुएको करता हुआ प्रतिभासता है और घटवनानेके अहंकार सहित है तौभी मृत्तिकाका मृत्तिकाके व्यापारके अनुकूल घटपरिणाम मट्टीसे अभेदरूप तथा मट्टीसे अभिन्न मृत्तिका परिणतिमात्र क्रियाकर किये हुएको करता नहीं प्रतिभासता । उसीतरह आत्मा भी अज्ञानसे पुद्गल कर्मके परिणामके अनुकूल अपने परिणाम अपनेसे अभिन्नको, और अपनेसे अभिन्न अपनी परिणतिमात्र क्रियाकर किये हुएको करता हुआ प्रतिभासो । परंतु पुद्गलके परिणामके करनेके अहंकारकर सहित होनेपर भी पुद्गलके परिणामके अनुकूल पुद्गलसे अभिन्न जो पुद्गलका परिणाम तथा पुद्गलसे अभिन्न जो पुद्गलकी परिणतिमात्रक्रिया उसकर किये हुएको करता हुआ मत (नहीं) प्रतिभासो ॥ भावार्थ-आत्मा अपने ही परिणामको करता हुआ प्रतिभासित हो पुद्गलके परिणामको करता हुआ नहीं प्रतिभासो इसी कारण आत्मा और पुद्गल इन दोनोंकी क्रियायें एक आत्माकी ही माननेवालेको मिथ्या दृष्टि कहा है।