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७ शूरवीर कौन ? ८ महत्ताका मूल क्या ? ९ सदा जागृत कौन ? १० इस ससारमे नरक जैसा ?
१७ वर्षसे पहले
दुःख क्या
१६ अधा कौन ?
१७ बहरा कौन ? १८. गूँगा कोन ?
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११ अस्थिर वस्तुं क्या
१२ इस जगतमे अति गहन क्या ?
“१३ चन्द्रमांकी किरणोके समान श्वेत कीर्तिके १३ सुमति और सज्जन ।
धारक कौन ? -
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'१४ जिसे चोर भी न ले सके वह खज़ाना कौनसा ? १४ १५ जीवका सदा अनर्थ करनेवाला कौन ?
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१९ शल्यकी भाँति सदा दुखदायी क्या - २० अविश्वास करने योग्य कौन ? २१. सदा ध्यान रखने योग्य क्या ?, २२ सदा पूजनीय कौन ?
७ जो स्त्रीके कटाक्षसे बीधा न जाये ।
८ किसीसे प्रार्थना ( याचना ) नही करना | ९. विवेकी ।
१० परतत्रता ( परवश रहना ) ।
११ यौवन, लक्ष्मी और आयु ।”
१२ स्त्रीचरित्र और उससे अधिक पुरुषचरित्र ।
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विद्या, सत्य और शीलव्रत ।
१५ आत्तं और रौद्र ध्यान ।
१६ कामी तथा रागी ।
१७ जो हितकारी वचन न सुने ।
१८ जो अवसर आने पर प्रिय वचन न
बोल सके ।
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१९. गुप्त किया हुआ काम ।
२० युवती और असज्जन (दुर्जन) मनुष्य |
२१ ससारकी असारता ।
२२ वीतराग देव, सुसाधु और सुधर्मं ।
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द्वादशानुप्रेक्षा
आत्माके लिये परमहितकारी द्वादशानु प्रेक्षा अर्थात् वैराग्यादि - भाव-भावित बारह चिन्तनाओ के स्वरूपका चिन्तन करता हूँ ।
१ अनित्य, २ अशरण, ३ ससार, ४ एकत्व, ५. अन्यत्व, ६ अशुचि, ७ आस्रव, ८. सवर, ९ निर्जरा, १० लोक, ११ - बोधिदुर्लभ और १२ धर्म । इन बारह चिन्तनाओके नाम प्रथम कहे हैं । भगवान तीर्थकर भी इनके स्वभावका चिन्तन करके संसार, देह एव भोगसे विरक्त हुए है | ये चिन्तनाएँ वैराग्यकी माता हैं । समस्त जीवोका हित करनेवाली है । अनेक- दु.खोसे व्याप्त ससारी जीवोंके लिये ये चिन्तनाएँ अति उत्तम शरण हैं । दुःखरूप अग्निसे सतप्त जीवोके लिये शीतल पद्मवनके मध्यमे निवासके समान हैं । परमार्थ मार्गको दिखानेवाली हैं । तत्त्वका निर्णय करानेवाली है । सम्यक्त्व उत्पन्न करनेवाली हैं । अशुभ ध्यानका नाश करनेवाली हैं। इन द्वादश चिन्तनाओके समान इस जीवका हित करनेवाला दूसरा कोई नही है । ये द्वादशागका रहस्य हैं । इसलिये इन बारह अनुप्रेक्षाओमेसे अब अनित्य अनुप्रेक्षाका भावसहित चिन्तन करते हैं ।
अनित्य अनुप्रेक्षा
देव, मनुष्य और तिर्यंच, यह सब देखते ही देखते पानीकी बूँद और ओसके पुजको भाँति विनष्ट हो जाते हैं । देखते ही देखते विलीयमान होकर चले जाते हैं। और यह सब ऋद्धि, सपदा और परिवार स्वप्न-समान हैं । जिस तरह स्वप्नमे देखी हुई वस्तु पुन दिखायी नही देती, उसी तरह ये विनाशको
रत्नकरड श्रापकाचारमेंसे प्रथम तीन अनुप्रेक्षाओका यह अनुवाद है, जो अपूर्ण हूँ ।