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१७ वर्षसे पहले
११३. स्वद्रव्यके ग्राहक शीघ्र हो
११४. स्वद्रव्यको रक्षकता पर ध्यान रखे ( दे ) |
११५ परद्रव्यकी धारकता शीघ्र छोडें ।
११६ परद्रव्यकी रमणता शीघ्र छोडें ।
११७ परद्रव्यकी ग्राहकता शीघ्र छोड़ें ।
११८ जब ध्यानकी स्मृति हो तब स्थिरता करें, उसके बाद सर्दी, गर्मी, छेदन, भेदन इत्यादिइत्यादि देह ममत्वका विचार न करे ।
११९ जब ध्यानकी स्मृति हो तब स्थिरता करें, उसके बाद देव, मनुष्य, तिर्यंचके परिषह आयें तो एक उपयोगसे, आत्मा अविनाशी है, ऐसा विचार लाये, तो आपको भय नही होगा, और शीघ्र कर्मवधसे मुक्त होगे । आत्मदशाको अवश्य देखेंगे । अनत - ज्ञान, अनत दर्शन इत्यादि-इत्यादि ऋद्धि प्राप्त करेंगे ।
१२० फुर्सतके वक्त व्यर्थ कूट और निंदा करते हैं, इसकी अपेक्षा वह वक्त ज्ञानध्यानमे लगायें तो कैसा योग्य गिना जाये ।
१२१ देनदार मिल जाये किन्तु आप कर्ज सोच-बूझ कर लेना ।
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१२२ देनदार चक्रवृद्धि व्याज लेने के लिये कर्ज दे, परतु आप उस पर ख्याल रखें 1, १२३ यदि तू कर्ज़का ख्याल नही रखेगा तो बादमे पछतायेगा । १२४ द्रव्यऋणको चुकानेकी चिंता करते है,
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तत्परता रखें ।
१२५ कर्ज़ चुकानेके लिये अधिक शीघ्रता करें |
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१ अन्तिम निर्णय होना चाहिये । २ सर्व प्रकारका निर्णय तत्त्वज्ञानमे है । ३ आहार, विहार, निहारकी नियमितता । ४ अर्थकी सिद्धि |
जहाँ उपयोग वहाँ धर्म है । महावीरदेवको नमस्कार ।
इसकी अपेक्षा भावऋण चुकानेकी अधिक
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आर्यजीवन
उत्तम पुरुषोने आचरण किया है ।
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नित्यस्मृति
१ जिस महान कार्यके लिये तू जन्मा है, उस महान कार्यका अनुप्रेक्षण कर ।
२ ध्यान धारण कर, समाधिस्थ हो जा ।
३ व्यवहारकार्यका विचार कर ले। जिसका प्रमाद हुआ है, उसके लिये अब प्रमाद न हो, ऐसा
कर। जिसमे साहस हुआ हो, उससे ऐसा वोध ले कि अब वैसा न हो ।
४ तू दृढ योगी है, वैसा ही रह ।
५. कोई भी अल्प भूल तेरी स्मृतिमेसे नही जाती यह महाकल्याण है ।