Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिऋणुभागसंकमे सामित्तं
* एवुंसयवेदस्स जहण्णाणुभोगसंकामत्रो को होइ ?
६८. सुगमं ।
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* एवं सयवेदक्खवच तस्सेव चरिमे अणुभागखंडए वट्टमाओ । ६ ६६. णेह खत्रयस्स णवंसयवेद विसेसणमणत्थयं, सोदएण सामित्तविहाणफलत्तादो । परोदण समितणिसो किण्ण कीरदे ? ण, तत्थ पुत्रमेत्र विणस्संतस्स णवुंसयवेदस्स
भावावद्धदो |
* छण्णोकसायाणं जहर णाणुभागसंकामओ को होइ ?
१००. सुगमं ।
* खवगो तेसिं चेव छष्णोकसायवेदणीयाणं चरिमे अणुभागखंड ए माओ ।
$ १०१. एत्थ चरिमाणुभागखंडए सव्त्रत्थ जहण्गाणुभाग संकमो अट्ठिदसरूवेण लग्भइति तत्थ जहण्णसामित्तं दिण्णं । एसो अत्थो णकुंसय-इत्थिवेदसा मित्तसुत्तेसु वि जोजेयत्रो । एवमोषेण जहण्णसामित्तं गयं ।
* नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागसंक्रमका स्वामी कौन है ?
६८ यह सूत्र सुगम है ।
* उसी के अन्तिम अनुभागकाण्डकमें स्थित नपुंसकवेदी क्षपक जीव नपुंसकवेद के जघन्य अनुभागसंक्रमका स्वामी है ।
६६. यहां पर क्षपकका नपुंसकवेद विशेषण निरर्थक नहीं है, क्योंकि स्वोदयसे स्वामित्वके विधान करनेका फल देखा जाता है ।
शंका-परोदयसे स्वामित्वका निर्देश क्यों नहीं करते हैं ।
समाधान — नहीं, क्योंकि परोदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़ा हुआ जीव पहले ही नपुंसकवेदका नाश कर देता है, इसलिए उसके जघन्यपना नहीं बन सकता ।
* छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागसंक्रमका स्वामी कौन है ?
१००. यह सूत्र सुगम है ।
* उन्हीं छह नोकषायवेदनीयके अन्तिम अनुभागकाण्डकमें विद्यमान क्षपक जीव उनके जघन्य अनुभाग संक्रमका स्वामी है ।
१०१. यहां अन्तिम अनुभागकाण्डकमें सर्वत्र जघन्य अनुभागसंक्रम अवस्थितरूप से प्राप्त होता है, इसलिए उसमें जवन्य स्वामित्व दिया है । यह अर्थ नपुंसकवेद और स्त्रीवेदविषयक areबन्धी सूत्रोंमें भी लगा लेना चाहिए ।
इस प्रकार श्रोघसे जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ ।