Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
४६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ एयवाणि जाव गुणिदकम्म सियस्स सव्वुक्कस्सगुणसकमट्ठाणे ति । एवमुवसमसम्माइटि. पढमसमयम्मि समुप्पण्णसकमट्ठाणाणं विक्खंभायामपमाणाणुगमो सुगमो। उबसमसम्माइट्ठिविदियादिसमएसु वि एवं चास खेज्जलोगविक्खंभायामेण सकमट्ठाणपदरुप्पत्ती वत्तव्या जाव गुणसकमचरिमसमयो ति । णवरि सव्वत्थ अधापवत्तपरिणामपंतिआयामादो एत्थतणपरिणामपंतिआयामो असखेज्जगणो, पुव्वुत्तप्पाबहुअबलेण तहाभावसिद्धीदो।
६८२०. एवमुप्पण्णासेसमिच्छत्तगुणसंकमट्ठोणाणि पच्चक्खाणलोभसयलसंकमठाणेहितो असंखेजगुणाणि । गुणगारो पलिदो० असंखे भागो असंखेजा लोगा च अण्णोण्णगुणिदमेतो। किं कारणं ? आयामादो आयामस्स पलिदोवमासंखेजभागमेत्ते गुणगारे संते विक्खंभादो वि विक्खभस्सासंखेजलोगमेत्तगुणगारदसणादो । अहवा जइ वि एत्थ आयाम गुणगारो पलिदोबमासंखेजभोगमेत्तो णाब्भुवगम्मदे, पच्चक्खाणलोभसंकमट्ठाणपरिवाडीणं चेवायामो अधापवत्तभोगहारपाहम्मेणासंखेजगुणो ति इच्छिजदे तो वि असंखेजगुणत्तमेदं ण विरुज्झदे, आयामगुणगारादो परिणामडाणगुणगारस्सासंखेजलोगपमाणस्सासंखेजगुणत्ते संसर्याभावादो। जइ वि उहयत्थ विक्वंभायामा सरिसा ति घेप्पंति तो वि णासखेजगुणपदुप्पायणमेदं वाहिजदे, तहान्भुवगमे
प्रति असंख्यात लोकप्रमाण संक्रमस्थान गुणितकर्मा शिक जीवके सबसे उत्कृष्ट गुणसंक्रमस्थानके प्राप्त होने तक व्यामोहके बिना उत्पन्न कराने चाहिए। इसप्रकार उपशमसम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें उत्पन्न हुए संक्रमस्थानोंका विष्कम्भ और आयामके प्रमाणका अनुगम सुगम है। उपशमसम्यग्दृष्टिके द्वितीयादि समयोंमें भी इसीप्रकार असंख्यात लोक विष्कम्भ-आयामरूपसे संक्रमस्थानोंके प्रतरकी उत्पत्ति गणसंक्रमके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक कहनी चाहिए। इतनी विशेषता है कि सर्वत्र अधःप्रवृत्त परिणामपंक्ति आयामसे यहाँका परिणामपंक्ति आयाम असंख्यातगुणा है, क्योंकि पूर्वोक्त अल्पबहुत्वके बलसे यह बात सिद्ध होती है।
८२०. इसप्रकार मिथ्यात्वके उत्पन्न हुए समस्त गुणसंक्रमस्थान प्रत्याख्यान लोभके समस्त संक्रमस्थानोंसे असंख्यातगुणे हैं। गुणकार पल्यका असंख्यातवा भाग और परस्पर गुणित असंख्यात लोक है, क्योंकि आयामसे आयामका गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होने पर विष्कम्भसे भी विष्कम्भका गुणकार असंख्यात लोकप्रमाण देखा जाता है । अथवा यद्यपि यहाँ पर आयामका गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण नहीं स्वीकार किया जाता है । किन्तु प्रत्याख्यान लोभकी संक्रमस्थान परिपाटियोंका ही आयाम अधःप्रवृत्त भागहारके माहात्म्यवश असंख्यातगुणा स्वीकार किया जाता है तो भी इसका असंख्यातगुणा होना विरोधको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि आयामके गुणकारसे परिणामस्थानोंके असंख्यात लोकप्रमाण गुणकारके असंख्यातगुणे होनेमें कोई संशय नहीं है। यद्यपि दोनों जगह विष्कम्भ और आयाम सदृश ग्रहण किये जाते हैं तो भी यह असंख्यातगुणरूप कथन बाधित नहीं होता, क्योंकि इस प्रकार स्वीकार करने