Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उत्तरपयडिपदेस कमे संकमट्ठायाणि
* अरदीए पदेससंकमट्ठाणाणि विसे साहियाणि । * एवं सयवेदे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । * दुगंछाए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । * भए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । * पुरिसवेदे पदेससंक मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । * माणसंजलणे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । * कोहसंजलणे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । * मायासंजलणे पदेससंकमडाणाणि विसेसाहियाणि । * लोहसंजलणे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ८२५. दाणि सुत्ताणि सुगमाणि ।
* सम्मन्त पदेससंकमट्ठाणापि श्रणंतगुणाणि ।
गा० ५८ ]
६ ८२६. कुदो ? उब्वेल्लणचरिमफालीए सव्त्रसंकममस्सियुणाणताणं संकमाणामेत्थ संभवादो ।
* सम्मामिच्छन्ते पदेससंकमट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ।
* उनसे अरतिमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
* उनसे नपुंसक वेद में प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । * उनसे जुगुप्सामें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं 1 * उनसे भयमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
* उनसे पुरुषवेद में प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
* उनसे मानसंज्वलनमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । * उनसे क्रोधसंज्वलनमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं। * उनसे मायासंज्वलनमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
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* उनसे लोभसंज्वलन में प्रदेशस क्रमस्थान विशेष अधिक हैं । ये सूत्र सुगम हैं।
६ ८२५.
* उनसे सम्यक्त्वमें प्रदेशस क्रमस्थान अनन्तगुणे हैं ।
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§ ८२६. क्योंकि उद्वेलनाकी अन्तिम फालिमें सर्वसंक्रमका आश्रय कर अनन्त संक्रमस्थान
यहाँ सम्भव हैं ।
* उनसे सम्यग्मिथ्यात्वमें प्रदेशस क्रमस्थान असं ख्यातगुणे हैं ।
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