Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिपदेससंकमे कालो
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जह० एयस० । उक्क० संखेजा समया । अणुक० सव्वद्धा । मणुस अपज० सत्तावीसं पडी उक० पदे०संका ० जह० एयसमओ । उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । अक० जह० अंतोमुहुत्तं । उक्क० पलिदो ० असंखे ० भागो । णवरि सम्म० -सम्मामि० अणुक० जह० अंतोमु० । उक्क० पलिदो० असंखे० भागो - णवरि सम्म० सम्मा मि० अणुक० जह० एयस० । एवं जाव० ।
१ २०१. जहण्ण पदं । दुविहो णि० - ओघे० - आदेसे ० | ओघेण सबपयडी० जह० पदे ० संका ० जह० एस० । उक्क० संखेज्जा समया । अजह० सव्वद्धा । एवं चदुसु दी व मज्ज० अजह० अणुक० भंगो | णवरि सोलसक० -भय-दुगु छा० अजह०
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काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है । मनुष्य अपर्याप्तकों सत्ताईस प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका जघन्यकाल मुहूर्त उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक ले जाना चाहिए ।
विशेषार्थ — यहाँ पर जिन मार्गणाओं की संख्या संख्यातसे अधिक है उनमें सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है तथा जिनका परिमाण संख्यात है उनमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है यह स्पष्ट ही है मात्र इसका एक अपवाद है वह यह कि आनतकल्पसे लेकर अपराजित विमान तक देव यद्यपि परिमाण संख्यात होते हैं फिर भी इनमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय बतलाया है सो इसका कारण स्वामित्वसम्बन्धी विशेषता है । बात यह है कि इनमें गुणितकर्मशिक मनुष्य याकर सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम करते हैं, इसलिए इनमें सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीवों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय ही बनता है । सर्वत्र सब प्रकृतियों के अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है । मात्र मनुष्य अपर्याप्तकों का जघन्य काल अन्तउत्कृष्ट कापल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे इनमें सब प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवों के जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। इसमें इतनी और विशेषता है कि यह सान्तर मार्गणा होनेसे इनमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीव एक समय तक रहें और दूसरे समयमें संक्रामक हो जायँ यह सम्भव हैं, इसलिए यह काल एक समय कहा है ।
१ २०१. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और प्रदेश । श्रघसे सब प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अजघन्य प्रदेशों के संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंके कालका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान है। इतनी और विशेषता है कि