Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
अपञ्चक्खाणमाणे उक्कस्सपदेससंकमो असंखेज्जगुणो ।
६ २७१. किं कारणं ? खविद कम्मंसियल क्खरोणागंतूण गेरइ एसुप्पण्णपढमसमए
अधापवत्त संकमेणेदस्स सामित्तावलंबणा दो ।
२८२
* कोहे जहण्णपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
* मायाए जहण्णपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
* लोभे जहण्णपदेससंकमो विसेसाहियो । * पञ्चक्खाणमाणे जहणणपदेससंकमो विसेसाहिओ । * कोहे जहणपदेससंकमो विसेसाहियो ।
* मायाए जहण्णपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
* लोभे जहण्णपदेससंकमो विसेसाहियो । विसेसपमाणमावलि०
६ २७२. एत्थ सव्वत्थ
घेतं ।
[ बंधगो ६
असंखे० भागपडिमा गियमिदि
* इत्थवेदे जहण्णपदेससंकमो अतगुणो ।
९ २७३. जइत्रि सम्मत्तगुणपा हम्मे णित्थीवेदस्स बंधवोच्छेदं काढूण तेत्तीससागरोवाणि देणाणि गालय विज्झादसंकमेग जहण्णसामित्तं जादं । तो विदेसघादिमाह - पेणातगुणत्त मेदस्स विल्लादोण विरुज्झदे |
* उससे अप्रत्याख्यानमानका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है ।
९ २७१. क्योंकि क्षपितकर्मा' शिकलक्षण से आकर नारकियोंमें उत्पन्न होने के प्रथम समयमें श्रधः प्रवृत्तसंक्रमके द्वारा इसके स्वामित्वका अवलम्बन किया गया है ।
* उससे अप्रत्याख्यान क्रोधका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
* उससे अप्रत्याख्यान मायाका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे अप्रत्याख्यान लोभका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे प्रत्याख्यान मानका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे प्रत्याख्यान क्रोधका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यान मायाका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
* उससे प्रत्याख्यान लोभका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
६ २७२. यहाँ पर सर्वत्र विशेष का प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो लब्ध वे उतना लेना चाहिए ।
* उससे स्त्रीवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम अनन्तगुणा है ।
६ २७३. यद्यपि सम्यक्त्वगुणके माहात्म्यवश स्त्रीवेदकी बन्धव्युच्छित्ति करके उसके साथ कुछ कम तेतीस सागर गलाकर विध्यातसंक्रमके द्वारा जघन्य स्वामित्व हुआ है तथापि देशघाति होनेके माहात्म्यवश इसका पूर्व प्रकृतिके प्रदेशसंक्रमसे अनन्तगुणा होना विरोधको नहीं प्राप्त होता ।