Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३०६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ संक० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइट्ठि । अप्पद० संक० कस्स ? अण्णद० सम्माइट्ठि० मिच्छाइट्ठि० वा । हस्स-रह-अरइ-सोगाणं भुज० अप्प० संक० कस्स ? अण्णद० सम्माइडि. मिच्छाइढि०। एवं सत्रणेरइय-तिरिक्खपंचिंदिय-तिरिक्खतिय-देवगदिदेवभवणादि जाव णवगेवजा त्ति ।
३४१. पंचिंदियतिरिक्खअप्प०-मणुसअपज्ज०-सम्म०-सम्मामि०-सत्तणोक० भज. अप्पद. संक० कस्स ? अण्णद०-सोलसक०-भय-दुगुछ० भुज० अप्प० अबढि० संक० कस्स ? अण्णद।
६३४२. मणुसतिए ओघं । णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्त० देवो ति ण भाणिदव्यो । अणुदिसादि सम्वट्ठा ति मिच्छ०-सम्मामि० इथिवेद०-णवंस०-अप्प० अणताणु० चउक०, चदुणोक० भज० अप्प०-बारसक०-पुरिसवे-भय-दुगुछा० भज० अप्प० अवढि० संक० कस्स १ अण्णद० । एवं जाव० ।
कालो एयजीवस्स। ६३४३. भजगारादिपदविसयसामित्तविहासणाणंतरमेत्ते । एयजीवसंबंधिओ कालो भजगारादिपदाण विहासियव्यो ति अहियारसंभालणापरमिदं सुत्तं ।
* मिच्छत्तस्स भुजगारसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? किसके होता है ? अन्यतर मिश्यादृष्टिके होता है। अल्पतरसंक्रम किसके होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिके होता है। हास्य, रति, अरति और शोकका भुजगार और अल्पतर संक्रम किसके होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिश्यादृष्टिके होता है। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यन्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक, सामान्यदेव और भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवों में जानना चाहिए।
६३४१. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सात नोकषायोंका भजगार और अल्पतरसंक्रम किसके होता है ? अन्यतरके होता है। सोलह कक्षाय, भय और जुगुप्साका भुजगार, अल्पतर और अवस्थितसंक्रम किसके होता है ? अन्यतरके होता है।
३४२. मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि यहाँ पर बारह कषाय और नौ नोकषायोंका अवक्तव्यसंक्रम देवोंके होता है ऐसा नहीं कहना चाहिए। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका अल्पतर, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और चार नोकषायोंका भुजगार और अल्पतर, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साका भुजगार, अल्पतर और अवस्थितसंक्रम किसके होता है ? अन्यतरके होता है। इसी प्रकार अनाहारकमार्गेणा तक ले जाना चाहिए।
इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ। * एक जीवकी अपेक्षा कालका अधिकार है। - ६३४३. भजगार आदि पदोंके स्वामित्वका व्याख्यान करनेके बाद आगे भुजगार आदि पदोंका एक जीव सम्बन्धी कालका व्याख्यान करना चाहिए। इस प्रकार अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र है।
* मिथ्यात्वके भुजगारसंक्रमका कितना काल है ?