Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३७२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ पुरिसवेद० । णवरि अवत्त० णत्थि । इत्थिवे०-णस०-चर्दुणोक. भुज०-अप्प० णत्थि अंतरं। एवं सवणेरइय-पंचिंदियतिरिक्खतिय३-देवगइदेवा भवणादि जाव णवगेवज्जा त्ति । तिरिक्खाणमोघं । णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्त० णत्थि । पंचिं०तिरिक्खअपज्ज० णारयभंगो। णवरि अणंताणु०चउक० अवत्त० पुरिसवे० अबढि० सम्म०सम्मामि० अवत्त० णत्थि । मिच्छत्तस्स असंका० ।
६५७२. मणुसतिए णारयभंगो। णवरि बारसक०-णवणोक० अबत्त० ओघं । मणुसअपज. सत्ताबीसं पयडीणं सवपदसंका० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। णवरि सोलसक०-भय-दुगुछा० अवढि० जह० एयस०, उक० असंखेजा लोगा। अणुदिसादि जाव सव्वट्ठा ति मिच्छ०-सम्मामि०-इत्थिवे०-णस० अप्प०. संका० णत्थि अंतरं, णिरंतरं । अणंताणु०४ भुज०संका. जह० एयस०, उक्क० वासप्रधत्तं पलिदो० असंखे भागो। अप्प० णत्थि अंतरं। बारसक०-पुरिसवेद-छण्णोक० देवोघं । एवं जाव० ।
६५७३. भावो सव्वत्थ ओदइओ भोवो।
कषाय, भय, जुगुप्सा और पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनका अवक्तव्यपद नहीं है। स्त्रीवेद, नपुंसकबेद और चार नोकषायोंके भुजगार और अल्पतर पदका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यम्चत्रिक, देव गतिमें देव और भवनवासियोंसे लेकर नौग्रीवेयक तकके देवोमें जानना चाहिए। सामान्य तिर्यञ्चोंमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंका अवक्तव्यपद नहीं है। पन्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तकों में नारकियोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धी चतुष्कका प्रवक्तव्यपद, पुरुषवेदका अवस्थित पद तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका श्रवक्तव्यपद नहीं है । ये मिथ्यात्वके असंक्रामक होते हैं ।
६५७२. मनुष्यत्रिकमें नारकियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्य संक्रामकोंका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सत्ताईस प्रकृतियों के सब पदोंके संक्रामकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके अवस्थित संक्रामकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यातं लोक प्रमाण है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद
और नपुंसकवेदके अल्पतर संक्रामकोंका अन्तरकाल नहीं है निरन्तर हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके भुजगार संक्रामकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल नौ अनुदिश और चार अनुत्तर विमानोंमें वर्ष पृथक्त्वप्रमाण और सर्वार्थसिद्धिमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अल्पतरपदका अन्तरकाल नहीं है । बारह कषाय, पुरुषवेद और छह नोकषायोंका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
६५७३. भाव सर्वत्र औदयिक भाव है।