Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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૪૫ર जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ तिसमऊणचदुसमऊण-पंचसमऊणादिकमेण बेछावद्विकालो सव्वो संधीओ जाणिऊणोदारेयवो जाव चरिमवियप्पं पत्तो ति । तत्थ सबचरिमवियप्पे भण्णमाणे एगो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमपुढवीए मिच्छत्तदव्यमोघुक्कस्सं कादण दो-तिण्णिभवग्गहणाणि तिरिक्खेसु गमिय तदो मणुसेसुववन्जिय अवस्साणमंतोमुहुत्ताहियाणमुवरि उक्समसम्मत्तं घेत्तण तकालभंतरे चेवाणताणुबंधिचउक्त विसंजोइय तदो वेदयसम्मत्तं पडिवजिय सबजहण्ण्णंतोमुहुतकालेण दंसणमोहक्खवणाए अब्भुट्ठिय अधापवत्तकरणचरिमसमए वट्टमाणो एत्थतणसवपच्छिमवियप्पसामिओ होइ। .६७४४. संपहि एवमुप्पण्णासेससंकमट्ठाणाणमायामविक्खंभपमाणं केत्तियमिदि मणिदे असंखेजलोगमेतं होइ । तं कथं ? खविदकम्मंसियजहण्णदव्वं गुणिदुक्कस्सदव्वादो सोहिय सुद्धसेसे जत्तिया संतकम्मपक्खेवा लभंति तत्तियमेत्तमेत्थायामपमाणं होई । तम्मि आणिजमाणो जहण्णदव्यमिच्छिय दिवगुणहाणिगुणिदमेदमेइ दियसमयपबद्धं ठविय अंतोमुहुतोवट्टिदोकडुक्कडणभागहारेण बेछावद्विकालभंतरे जाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णन्मत्थरासिणार तम्मि भागे हिदे अधापवत्तचरिमसमयजहण्णदधमागच्छदि । एदमेवं चेव ठविय उक्कस्सदबमिच्छामो ति दिवड्डगुणहाणिगुणिदमेगमेइ दियसमयपबद्धं
गये द्रव्यमात्रको बढ़ा कर ग्रहण करना चाहिए। इस विधिसे तीन समय कम, चार समय कम
और पांच समय कम आदि क्रमसे पूरा दो छयासठ सागर काल सन्धियोंको जानकर अन्तिम विकल्पके प्राप्त होने तक उतारना चाहिए । वहाँ सबसे अन्तिम विकल्पका कथन करने पर जो कोई एक गुणितकर्मा शिक जीव सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्वके द्रव्यको ओघ उत्कृष्ट करके तथा तिर्यञ्चोंमें दो-तीन भव बिताकर अनन्तर मनुष्योंमें उत्पन्न होकर आठ वर्ष और अन्तमुहूर्त के बाद उपशम सम्यक्त्वको प्रहण कर उस कालके भीतर ही अनन्तानुवन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करके अनन्तर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होकर सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके लिए उद्यत होकर अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें विद्यमान है वह यहाँके सबसे अन्तिम विकल्पका स्वामी होता है।।
७४४. अब इस प्रकार उत्पन्न हुए समस्त संक्रमस्थानोंके आयाम और विष्कम्भका प्रमाण कितना है ऐसा पूछने पर असंख्यात लोकप्रमाण है।
शंका-वह कैसे?
समाधान-क्योंकि क्षपित कर्माशिक जीवके जघन्य द्रव्यको गुणितकर्मा शिक जीवके उत्कृष्ट द्रव्यमेंसे घटा कर शेष बचे द्रव्यमें जितने सत्कर्मप्रक्षेप प्राप्त होते हैं उतना यहाँ पर आयाम का प्रमाण होता है। उसके लाने पर जघन्य द्रव्यके लानेकी इच्छासे डेढ़ गुणहानिसे गुणित एकेन्द्रिय सम्बन्धी एक समयप्रबद्धको स्थापित कर अन्तर्मुहूर्तसे भाजित अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारसे तथा दो छयासठ सागर कालके भीतर नाना गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे उसके भाजित करने पर अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें जघन्य द्रव्य आता है। पुनः इसे इसी
१ आप्रतौ रासी च ताप्रतो रासी (सिणा ) इति पाठः ।