Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 509
________________ ४८२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो हु ७६१. सुगममेदमहियारसंभालणवक्क । 8 सव्वत्थोवाणि लोहसंजलणे पदेससंकमट्ठाणाणि । ६७६२. कुदो ? लोहसंजलणस्स सव्वसंकमाभावेणासंखेजलोगमेत्ताणं चेत्र संकमट्ठाणाणमुवलंभादो। ® सम्मत्त पदेससंकमठाणाणि अणंतगुणाणि।। ६७६३. किं कारणं ? अभवसिद्धिएहितो अणतगुणसिद्धाणमणंतभागपमाणत्तोदो। णेदमसिद्धं, उव्वेल्लणचरिमफालीए सव्वसंकममस्सिऊण तेत्तियमेत्तसंकमट्ठाणाणं णिप्पडिबद्धमुवलंभादो। * अपचक्खाणमाणे पदेससंकमट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि । . ६ ७६४. किं कारणं ? सम्मत्तस्स चरिमुव्वेलणकंडयजहण्णफालीए तस्सेवुकस्सचरिमफालीदो सोहिदाए सुद्धसेसमेत्ता संकमट्ठाणवियप्पा होति । अप्पच्चक्खाणमाणस्स वि सगसबजहण्णचरिमफालीए अप्पणो उकस्सचरिमफालीदो सोहिदाए सुद्धसेसमेत्ता संकमट्ठाणवियप्पा सव्यसंकमणिबंधणा होति । होता वि सम्मत्तसुद्धसेसट्ठाणवियप्पेहितो असंखेजगुणा, मिच्छतादो गुणसंक्रमेण पडिच्छिददधस्स उव्येल्लणकालभंतरगलिदावसिट्ठस्स सम्मत्तचरिमफालिसरूवेणुवलंभादो। अपच्चक्खाणमाणस्स पुण अणणाहियकम्मढिदिसंचएण मिच्छत्तकस्सदवादो विसेसहीणेण खवणाए अब्भुट्ठिदस्स सव्वुकस्स ६७६१. अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह वाक्य सुगम है। * लोभसंज्वलनमें प्रदेशसंक्रमस्थान सबसे थोड़े हैं। ६७६२, क्योंकि लोभसंचलनका सर्वसंक्रम नहीं होनेसे असंख्यात लोकमात्र ही संक्रमस्थान उपलब्ध होते हैं। * उनसे सम्यक्त्वमें प्रदेशसंक्रमस्थान अनन्तगुणे हैं। ६ ७६३. क्योंकि ये अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं। यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि उद्वेलनाकी अन्तिम फालिके सर्वसंक्रमके आश्रयसे उतने संक्रमस्थान बिना वाधाके उपलब्ध होते हैं। * उनसे अप्रत्याख्यानमानमें प्रदेशसंक्रमस्थान असंख्यातगुणे हैं। ६७६४. क्योंकि सम्यक्त्वके अन्तिम उद्वेलनाकाण्डककी जघन्य फालिको तसीके उत्कृष्ट अन्तिम फालिमेंसे घटा देने पर शुद्ध शेषमात्र संक्रमस्थान विकल्प होते हैं । अप्रत्याख्यानावरण मानके भी अपनी सबसे जघन्य अन्तिम फालिको अपनी उत्कृष्ट अन्तिम फालिमेंसे घटा देने पर शुद्ध शेषमात्र सर्वसंक्रमनिमित्तक संक्रमस्थान विकल्प होते हैं। होते हुए भी सम्यक्त्वके शुद्धशेष स्थानविकल्पोंसे असंख्यातगुणे होते हैं, क्योंकि मिथ्यात्वमेंसे गुणसंक्रमके द्वारा प्राप्त हुए तथा उद्वेलना कालके भीतर गलकर अपशिष्ट रहे द्रव्यको सम्यख्यकी अन्तिम फालिरूपसे उपलब्धि होती है । परन्तु क्षपणाके लिए उद्यत हुए जीवके अप्रत्याख्यानावरण मानकी सबसे उत्कृष्ट फालि न्यूनाधिकतासे रहित कर्मस्थितिके संचयप्रमाण तथा मिथ्यात्वके उत्कृष्ट द्रव्यसे विशेष हीन हीत।

Loading...

Page Navigation
1 ... 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590