Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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चाहिए
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* रवीए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ८००. कुदो ? पयडिविसेसादो ।
* इत्थवेदे पदेससंकमट्ठ। पाणि संखेज्जगुणाणि । ८०१. कुदो ? बंधगद्धापा हम्मादो ।
* सोगे पदेससंकमट्ठाषाणि विसेसाहियाणि ।
६ ८०२. एत्थ बंधगद्धा विसेसमस्सिऊण संखेजभागाहियत्तं दट्ठव्वं । * अरदीए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ९ ८ ० ३. कुदो ? पयडिविसेसादो ।
* एवं सयवेदे पदेससंकमद्वाणाणि विसेसाहियाणि । ८०४. एत्थ बिंधगद्धाविसेसमस्सिऊण विसेसा हियत्तमणुगंतव्वं । * दुछाए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६८०५. कुदो ? धुवबंधित्तेणित्थि - पुरिसवेदबंधगद्धासु वि संचयोवलंभादो । * भए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ९८०६. पय डिविसेसमेत्तेण ।
* उनसे रतिमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । ६ ८००. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है ।
* उनसे स्त्रीवेद में प्रदेशसंक्रमस्थान संख्यातगुणे हैं ।
[ बंधगो ६
§ ८०१. क्योंकि इसका बन्धक काल बड़ा है .
* उनसे शोक में प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
८०२. यहाँ पर भी बन्धक काल विशेषका श्राश्रय कर संख्यातवां भाग अधिक जानना
* उनसे अरतिमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
९८०३. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है ।
* उनसे नपुंसकवेद में प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
८०४. यहाँ पर भी बन्धककाल बिशेषका आश्रय कर विशेषाधिकता जाननी चाहिए ।
* उनसे जुगुप्सामें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
८०. क्योंकि यह ध्रुवबन्धिनी प्रकृति होनेसे स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धककालोंमें भ इसका संचय उपलब्ध होता है।
* उनसे भयमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ।
६ ८०६. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है ।