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________________ ४८६ चाहिए जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * रवीए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ८००. कुदो ? पयडिविसेसादो । * इत्थवेदे पदेससंकमट्ठ। पाणि संखेज्जगुणाणि । ८०१. कुदो ? बंधगद्धापा हम्मादो । * सोगे पदेससंकमट्ठाषाणि विसेसाहियाणि । ६ ८०२. एत्थ बंधगद्धा विसेसमस्सिऊण संखेजभागाहियत्तं दट्ठव्वं । * अरदीए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ९ ८ ० ३. कुदो ? पयडिविसेसादो । * एवं सयवेदे पदेससंकमद्वाणाणि विसेसाहियाणि । ८०४. एत्थ बिंधगद्धाविसेसमस्सिऊण विसेसा हियत्तमणुगंतव्वं । * दुछाए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६८०५. कुदो ? धुवबंधित्तेणित्थि - पुरिसवेदबंधगद्धासु वि संचयोवलंभादो । * भए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ९८०६. पय डिविसेसमेत्तेण । * उनसे रतिमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । ६ ८००. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है । * उनसे स्त्रीवेद में प्रदेशसंक्रमस्थान संख्यातगुणे हैं । [ बंधगो ६ § ८०१. क्योंकि इसका बन्धक काल बड़ा है . * उनसे शोक में प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । ८०२. यहाँ पर भी बन्धक काल विशेषका श्राश्रय कर संख्यातवां भाग अधिक जानना * उनसे अरतिमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । ९८०३. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है । * उनसे नपुंसकवेद में प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । ८०४. यहाँ पर भी बन्धककाल बिशेषका आश्रय कर विशेषाधिकता जाननी चाहिए । * उनसे जुगुप्सामें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । ८०. क्योंकि यह ध्रुवबन्धिनी प्रकृति होनेसे स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धककालोंमें भ इसका संचय उपलब्ध होता है। * उनसे भयमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । ६ ८०६. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है ।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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