Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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કપ૦ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ परिवाडीणं सव्वसंकमट्ठाणाणि असंखेजलोगमेत्ताणि होति । किमेत्थ संकमट्ठाणपरिवाडीणमायामो बहुगो कि वा विक्खंभो ति पुच्छिदे विखंभादो आयामो असंखेजगुणो । कुदो एदमवगम्मदे ? पढमपरिवाडिजहण्णसंकमट्ठाणादो तत्थेवुकस्ससंकमट्ठाणं विसेसाहियं इदि सुत्ताविरुद्धपुवाइरियवक्खाणादो । तदो एत्थुप्पण्णासेससंकमट्ठाणाणं पमाणमसंखेजा लोगा ति सिद्धं ।
७४२. संपहि एदं चरिमवियप्पपडिबद्धसंतकम्मं समऊणदुसमऊणादिकमेण बेछावटिकालं सव्वमोदारिय गुणिदकम्मंसियस्स कालपरिहाणीए ठाणपरूवणं वत्तइस्सामो । तं जहा--एगो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमपुढवीए मिच्छत्तदव्यमुक्कस्सं करेमाणो एयगोवुच्छमेत्तेणणं कादण तत्तो णिप्पिडिय दो-तिण्णितिरिक्खभवग्गहणाणि बोलाविय सबलहु देवेसुप्पजिय सम्मत्तपडिलंमेण समऊणबेछावट्ठीओ भमियूण दंसणमोहक्खवणाए अब्भुट्ठिय अधापवत्तकरणचरिमसमयम्मि वट्टमाणो सयलबेछावट्ठीओ भमिय अधापवत्तचरिमसमयम्मि पुव्वमुप्पाइदसंक्रमट्ठाणसंतकम्मिएण सरिसो-तं मोत्तण इमं घेत्तूण अप्पणो ऊणीकयदव्यमेत्तमेत्य वडावेयध्वं । तं कधं वड्डाविजदि ति वुत्ते वुच्चदे । ओकड्डक्कडणमागहारं जोगगुणगारं विज्झादसंकमभागहारं बेअसंखेजा लोगे च अण्णोण्णगुणे कादूण
mmm विष्कम्भके गुणित करने पर सब परिपाटियोंके सव संक्रमस्थान असंख्यात लोकप्रमाण होते हैं । क्या यहाँ पर संक्रमस्थान परिपाटियोंका आयाम बहुत है या विष्कम्भ बहुत है ऐसा पूछने पर विष्कम्भसे आयाम असंख्यातगुण है।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-प्रथम परिपाटीके जघन्य संक्रमस्थानसे वहीं पर उत्कृष्ट संक्रमस्थान विशेष अधिक है इस सूत्रके अविरुद्ध पूर्वाचार्यके व्याख्यानसे जाना जाता है।
___ इसलिए यहाँ पर उत्पन्न हुए समस्त संक्रमस्थानोंका प्रमाण असंख्यात लोक यह सिद्ध हुआ।
७४२. अब अन्तिम विकल्पसे सम्बन्ध रखनेवाले इस सत्कर्मको एक समय कम, दो समय कम आदिके क्रमसे दो छयासठ सागरके सब कालको उतार कर गुणितका शिक जीवके काल परिहानिसे स्थान प्ररूपणाको बतलाते हैं। यथा-सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्वके द्रव्यको उत्कृष्ट कर तथा उसमेंसे एक गोपुच्छामात्र कम करके और वहाँसे निकल कर तथा दो-तीन तिर्यञ्च भवोंको बिताकर अतिशीघ्र देवोंमें उत्पन्न होकर सम्यक्त्वको प्राप्त कर एक समय कम दो छयासठ सागर काल तक भ्रमण कर तथा दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके लिए उद्यत हो अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें विद्यमान कोई एक गुणित कर्मा शिक जीव पूरे दो छयासठ सागर काल तक भ्रमण कर अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें पूर्वमें उत्पादित संक्रमस्थानसत्कर्मके समान है, इसलिए उसे छोड़ कर और इसे ग्रहण कर अपना कम किया गया मात्र द्रव्य यहाँ पर बढ़ाना चाहिए । वह कैसे बढ़ाया जाता है ऐसा पूछने पर कहते हैं-अपकर्षण-उत्कर्षण भागहार, योगगुणकार, विष्यात संक्रमभागहार और दो असंख्यात लोकोंको परस्पर गुणितकर तथा डेढ गुणहानिसे भाजित