Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ ६६४५. सुगममेदमप्पणासुत्तं।
• लोहसंजलणस्स उक्कस्सिया वड्डी कस्स ? F६४६. सुगमं ।
* गुणिदकम्मंसिएण लहुं चत्तारिवारे कसाया उवसामिदा, अपच्छिमे भवे दो वारे कसाए उवसामेऊण खवणाए अब्भुट्ठिदो जाधे चरिमसमए अंतरमकदं ताधे उकसिसया वड्डी।
६६४७. किमट्टमेसो गुणिदकम्मंसिओ चदुक्खुत्तो कसायोवसामणाए पयट्टाविदो ? अवज्झमाणपयडीहिंतो गुणसंकमेण बहुदव्यसंगहणटुं। तदो गणिदकम्मंसियलक्खणेण सत्तमपुढवीदो आगंतूण मणुसेसुववजिय गम्भादिअवस्साणमुवरि दोवारे कसायोवसामणाए परिणमिय पुणो मिच्छत्तपडिवादेण सव्वलहुं कालं कादूण मणुसेसु उबवण्णेण अपच्छिमे तम्मि मणुसभवग्गहणे दो वारे कसाया उवसामिदा । तदो हेट्ठा ओसरिदूण खत्रणाए अब्भुद्विदेण तेण जाधे चरिमसमए अंतरमकदं तस्स उक्कस्सिया लोहसंजलणपदेससंकमविसया वही होइ ति घेत्तव्वं, हेटिमासेससंकहितो तत्थतणसंकमस्स बहुत्तोवलंभादो।
उक्कस्सिया हाणी कस्स ? ६६४५. यह अर्पणासूत्र सुगम है। * लोभसंज्वलनकी उत्कृष्ट वृद्धि किसकें होती है। ६६४६. यह सूत्र सुगम है।
* जिस गुणितकर्मा शिक जीवने अतिशीघ्र चार बार कषायोंकी उपशामना की है। उसमें भी अन्तिम भवमें दो बार कषायोंको उपशमा कर जो क्षपणाके लिए उद्यत हुआ । उसने जब अन्तिम समयमें अन्तर नहीं किया तब उसके संज्वलन लोभको उत्कृष्ट वृद्धि
होती है।
६६४७. शंका-इस गुणितकर्मा शिक जीवको चार बार कषायोंकी उपशामनाके लिए क्यों प्रवृत्त कराया है ?
समाधान- नहीं बँधनेवाली प्रकृतियोंमेंसे गुणसंक्रमके द्वारा बहुत द्रव्यका संग्रह करनेके लिए ऐसा किया है।
इसलिए गुणितकर्मा शिक लक्षणके साथ सातवीं पृथिवीसे आकर मनुष्यों में उत्पन्न हो गर्भसे लेकर आठ वर्षके बाद दोबार कषायोंकी उपशामनारूपसे परिणमा कर पुनः मिथ्यात्वमें गिरनेके साथ अतिशीघ्र मरकर और मनुष्योंमें उत्पन्न होकर अन्तिम उस मनुष्यभवमें दोबार कषायोंकी उपशामना की। तदनन्तर नीचे आकर क्षपणाके लिए उद्यत हुए उसने जब अन्तिम समयमें अन्तर नहीं किया तब उसके लोभसंज्वलनकी प्रदेशसंक्रमविषयक उत्कृष्ट वृद्धि होती है ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि पूर्वके समस्त संक्रमोंसे यहाँका संक्रम बहुत उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट हानि किसके होती है ?