Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गा० ५८
उत्तरपयडिपदेस कमे पदणिक्खेवो
४०६
बंधेण णिज्जरा सरिसी भवदि ताघे एदेसिं कम्माणं जहण्णिया वड्डी च हाणी च अवद्वाणं च ।
६६७७. एदस्स सुत्तस्सत्थो । तं जहा -- ' जहण्गेणेइ दियकम्मेणे' त्ति जिद्द सो खविदकम् मंसियलक्खणेणागद एइ दियस्स जहण्णस तकम्मगहणफलो । 'स' जमास जमं च बहुसो गदो' त्ति वयणमेइ दिएसु खविदकम्मंसियलक्खणेण कम्मट्ठिदिमणुपालेदूण तत्तो निस्सरिय तसेसुप्पण्णस्स सव्वुक्कस्ससंजमा संजम -संजमपरिणामणिबंधणगुणसे ढिणिञ्जराए जहणे 'दियसंतकम्मस्स सुट्ठ जहण्णीकरणट्टमिदं दट्ठव्वं । एदेण पलिदोवमाणं असंखेजभागमेत संजमा संजम कंडयाणं तप्पा ओग्गसंखेज संजमकंडयाणं च संभवो सूचिदो। एत्थ सम्मत्ताणताणुवं धिविसंजोयणकंडयानं पि अंतब्भावो वत्तव्यो । 'चत्तारि वारे कसाया उवसामिदा' त्तिद्दि सेण उवसामयपरिणामणिबंधणब हुकम्म पोग्गलणिञ्जराए संगहो कओ दट्ठव्वो । एवं पदकम्माणं बहुपोग्गलगालणं काढूण तदो एवं दिए गदो । किमट्ठमेसो एइ दिएस पवेसिदो १ ण, तत्थ पलिदोषमासंखेज़ भागमेत्त अप्पयरका लब्भंतरे चिराणसंतकम्मेण सह उवसामगसमयपबद्धेसु अणागालिदिसु जहण्णयरसंतकम्मारणुप्पत्तीदो। एवमुवसामय समयपबद्धे
अवस्थासम्बन्धी समयप्रबद्धके गली देनेपर जब बन्धसे निर्जरा समान होती है तब इन कर्मो की जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान होता है ।
§ ६७७. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। यथा-सूत्र में 'जहोणेइ दियकम्मे ' इस पदक निर्देश क्षपितकर्माशिक लक्षण से आये हुए एकेन्द्रिय जीवके जघन्य सत्कर्मके ग्रहण करनेके लिए किया है । 'संजमा संजमं संजमं च बहुसों गदो' यह वचन एकेन्द्रिय जीवोंमें क्षपितकर्माशिक लक्षण के साथ कर्मे स्थितिका पालन कर फिर वहाँसे निकलकर त्रसोंमें उत्पन्न हुए जीवके सबसे उत्कृष्ट संयमासंयम और संयमरूप परिणामोंके निमित्तसे होनेवाली गुणश्र णिनिर्जराके द्वारा एकेन्द्रियसम्बन्धी जघन्य सत्कर्मको अच्छी तरह जघन्य करने के लिए जानना चाहिए। इस वचन के द्वारा पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण संयमासंयमकाण्डक और तत्प्रायोग्य संख्यात संयमकाण्डक सम्भव हैं यह सूचित किया गया है । यहाँ पर सम्यक्त्वके काण्डकोंका और अनन्तानुबन्धीके विसंयोजनाकाण्डकों का अन्तर्भाव कहना चाहिए । 'चत्तारि वारे कसाया उबसामिदा' इस वचन द्वारा उपशामक सम्बन्धी परिणामोंके कारण हुई बहुत कर्मोंकी निर्जराका संग्रह किया गया है ऐसा जानना चाहिए । इस प्रकार प्रकृत कर्मोंके बहुत पुद्गलोंको गलाकर उसके बाद एकेन्द्रियों में
गया।
शंका- इसे एकेन्द्रियों में किसलिए प्रविष्ट कराया है ?
समाधान नहीं, क्योंकि प्रकृतमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण अल्पतर कालके भीतर प्राचीन सत्कर्मके साथ उपशामकसम्बन्धी समयप्रबद्धोंके अगालित रहने पर जघन्यतर
५२