Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] ___ उत्तरपयडिपदेससंकमे समुकित्तणा
४३५ ७१६. संपहि असंखेजगुणवडिविसयो वुच्चदे । तं जहा—उव्वेन्लणसंकमादो वेदगसम्मत्तं पडिवण्णपढमसमये विज्झादसंकमादो मिच्छत्तं पडिवण्णसम्माइद्विपढमसमये वा सम्वं हि चेत्र चरिमुवेलणखंडए वा सम्मत्तप्पत्तिगुणसंकमकालभंतरे दसणमोहक्खवणगुणसंकमकालभंतरे वा असंखेजगुणवड्डी होइ । गुणसंकमादो विज्झादसंकमे पदिदसम्माइडिपढमसमए अधापवत्तसंकमादो विज्झादे पदिदसम्माइटिपढमसमए उव्वेन्लणाए परिणदमिच्छाइटिपढमसमए वा असंखेजगुणहाणिसंकमो होइ । .
सम्मत्तस्स असंखेजभागहाणि-असंखेनगुणवड्डी हाणो अवत्तव्वयं च अस्थि ।
६ ७२०. उव्वेल्लेमाणमिच्छाइट्ठिम्मि जाव दुचरिमद्विदिखंडयो ति ताव असंखेजभागहाणिसंकमो चरिमुवेल्णखंडए असंखेजगुणवाहिसंकमो अधापवत्तसंकमादो उव्वेन्लणपरिणाममुवगयमिच्छाइद्विपढमसमए असंखेजगुणहाणिसंकमो सम्मत्तादो मिच्छत्तं पडिवण्णपढमसमए अवत्तसंकमो ति चउण्हमेदेसि पदाणमेत्थ संभवो ण विरुज्झदे ।
* तिसंजलणपुरिसवेदाणमत्थि पत्तारि वड्ढी चत्तारि हाणीयो प्रवट्ठाणमवत्तव्वयं च ।
६७१६. अब असंख्यातगुणवृद्धिका विषय कहते हैं । यथा-उद्वेलना संक्रमसे वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेके प्रथम समयमें अथवा विध्यातसंक्रमसे मिश्यात्वको प्राप्त होनेवाले सम्यग्दृष्टि जीवके प्रथम समयमें अथवा सम्पूर्ण अन्तिम उद्वेलनाकाण्डकमें, सम्यक्त्वकी उत्पत्ति होने पर गुणसंक्रम कालके भीतर अथवा दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें गुणसंक्रम कालके भीतर असंख्यातगुणवृद्धिसंक्रम होता है । तथा गुणसंक्रमसे विध्यातसंक्रममें आये हुए सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें, अधःप्रवृत्तसंक्रमसे विष्यातसंक्रममें आये हुए सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें अथवा उद्वेलनासक्रमरूपसे परिणत हुए मिथ्यादृष्टिके प्रथम समयमें असंख्यातगुणहानिसंक्रम होता है।
* सम्यक्त्वका असंख्यातभागहानि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अबक्तव्यसंक्रम होता है।
६७२०. उद्वेलना करनेवाले मिथ्यादृष्टिके जब तक द्विचरम स्थितिकाण्डक है तब तक असंख्यातभागहानिसंक्रम, अन्तिम उद्वेलनाकाण्डकमें असंख्यातगुणवृद्धिसंक्रम, अधःप्रवृत्तसंक्रमसे उद्वेलनापरिणामको प्राप्त हुए मिथ्यादृष्टि जीवके प्रथम समयमें असंख्यातगुणहानिसंक्रम और सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वको प्राप्त हुए जीवके प्रथम समयमें अवक्तव्यसंक्रम होता है इस प्रकार इन चारों पदोंका सम्भव यहाँ पर विरोधको प्राप्त नहीं होता।
___ * तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थित और अवक्तव्यसंक्रम होता है।