Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 463
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ § ७२१. एत्थ तिसंजलणग्गहणेण लोहसंजलणवजियानं तिन्हं संजलणाणं गहणं काय, लोहसंजलणस्स उवरिमसुत्ते समुत्तिणादो । एदेसिं तिसंजलण - पुरिसवेदाणमत्थि चव्हाओ वी-हाणीओ अवट्ठाणमवत्तव्त्रयं च । कुदो ? संसारावत्थाए सव्वत्थासंखेजभाग- हाणि अडाणामुवलंभादो | चिराणसंतकम्मचारिमफालीए तदणंतरसमयभाविणवकबंधसंकमे च जहाकममसंखेजगुणवदिहाणिसंकमाणमुवलंभादो । तत्थेव णवकबंधसंकमे वावदस्स जोगविसेसमस्सिऊण संखेजभागवडि-हाणि संखेजगुणव-हाणीणं संभवो वलंभादो | एत्थेव सेसवड- हाणि अवाणाणं पि संभवदंसणादो च । णबरि पुरिसवेदावडाणस्स भुजगारभंग । सव्वोवसामणापडिवादे सव्वेसिमवत्तव्यसंभवो दट्ठव्वो । * लोहसंजलणस्स अस्थि असंखेज्जभागवड्डी हाणी अवद्वाणमवतव्वयं च ४३६ § ७२२. कुदो १ सेसवडि-हाणीणमेत्थासंभवो ९ ण, लोहसंजलणविस अधापवत्तसंकर्म मोत्तणण्णसंकमाभावेण सुद्धणवक बंधसंकमाभावेण च तदभावणिण्णयादो । तम्हा लोहसंजणस्स असंखेजभाणवड्डि- हाणि - अवट्ठाणसंकमा चेत्र, णाण्णो संकमो त्ति सिद्धं । वरि सोवसामणापडिवादम स्सिऊणावत्तव्वसंकमो समुक्कित्तियन्त्रो ! ७२१. यहाँ पर तीन संब्वलनोंके ग्रहण करनेसे लोभसंज्वलन को छोड़कर शेष तीन संज्वलनका प्रण करना चाहिए, क्योंकि लोभसंज्वलन की आगे सूत्र में समुत्कीर्तना की है। इन तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी चार प्रकारकी वृद्धियाँ, चार प्रकारकी हानियाँ, अवस्थान और अवक्तव्यपद हैं, क्योंकि संसार अवस्थामें सर्वत्र असंख्यात भागवृद्धि, संभागहानि और स्थान संक्रम उपलब्ध होते हैं । तथा प्राचीन सत्कर्मकी अन्तिम फालिसें और तदनन्तर समयमें होनेवाले नवकबन्धसम्बन्धी संक्रममें क्रमसे श्रसंख्यातगुणवृद्धिसंक्रम और असंख्यातगुणहानि संक्रम उपलब्ध होते हैं । तथा वहीं पर नवकबन्धके संक्रममें व्याप्त हुए जीवके योग विशेषका आश्रय कर संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिसंक्रम सम्भव रूपसे उपलब्ध होते हैं और वहींपर शेष वृद्धि, हानि और अवस्थान संक्रम सम्भव रूपसे देखे जाते हैं । किन्तु इतनी विशेषता है कि पुरुष वेदके अवस्थान संक्रमका भंग भुजगारके समान जानना चाहिए । तब सर्वोपशामना से गिरते समय सबका अवक्तव्य संक्रम जानना चाहिए । * लोभसंज्वलनकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थान और अवक्तव्य संक्रम है । ६ ७२२. शंका – यहाँ पर शेष वृद्धियाँ और हानियाँ असम्भव क्यों हैं ? समाधान — नहीं, क्योंकि लोभसंज्वलन के विषय में अधःप्रवृत्तसंक्रमको छोड़कर अन्यसंक्रम सम्भव न होनेसे तथा शुद्ध नवकबन्धके संक्रमका अभाव होनेसे शेष वृद्धियों और हानियोंके अभाव का निर्णय होता है । इसलिए लोभसंज्वलनके असंख्यात भागवृद्धिसंक्रम, असंख्यात भागहानिसंक्रम स्थानक्रम ही होते हैं, अन्यसंक्रम नहीं होता यह सिद्ध हुआ । किन्तु इतनी विशेषता है कि सर्वोपशामना से प्रतिपातका आश्रयकर अवक्तव्यसंक्रमकी समुत्कीर्तना करनी चाहिए ।

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