Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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४३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ तदो पुव्यावरविरुद्धमेदं ति ?ण एस दोसो, असंखेजगुणवडिभुजगारस्स तत्थ पहाणभावेण विवक्खियत्तादो । ण च एसो भुजगारविसयो तत्थ ग विवक्खिओ त्ति एदस्सोभावो वोत्तसकिञ्जदे, अप्पिदाणप्पिदसिद्धीए सव्वत्थ पडिसेहाभावादो । अधवा एदम्मि विसये अप्पयरसंकमो चेवे ति सुत्तयाराहिप्पाओ। कुदो एदं णव्वदे १ सम्मामिच्छत्तप्पयरसंकमस्स सादिरेयछावहिसागरोवमकालपरूवयसुत्तादो । अण्णहा देसूणछावहिसागरो. वमकालप्पसंगादो। एवं च संते सम्मामिच्छत्तस्सासंखेजभागवहिविसओ का होइ ति पुच्छिदे मिच्छत्तं गंतूण अधापवत्तसंकमं कुणमाणस्स सम्मत्ताहिमुहावत्थाए अंतोमुहुत्तकालभतरे परिणामवसेण असंखेजभागवदिविसयो घेत्तव्यो । तत्थासंखेजभागवड्डी होइ त्ति कुदो णबदे १ सम्मामिच्छत्तकस्सहाणि सामित्तसुत्तादो। एवमेसो असंखेजभागवडिविसयो अणुमग्गिदो। असंखेजभागहाणि-अवत्तव्यविसयो पुण मिच्छत्तभंगेणावगंतव्यो, विसेसाभावादो । णवरि मिच्छाइडिम्मि वि जाव उव्वेन्लणादुचरिमखंडयचरिमफालि ति ताव असंखेजभागहाणिविसयो वत्तव्यो ।
गुणसंक्रम इन तीनोंके विषयरूपसे वहाँ पर तीनों कालोंमें भुजगारके स्वामित्वका नियम किया है। इसलिए यह पूर्वापर विरुद्ध है ?
समाधान--यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि वहाँ पर असंख्यातगुणवृद्धि भुजगारकी प्रधान रूपसे विवक्षा की है। यह भुजगारका विषय वहाँ पर विवक्षित नहीं है, इसलिए इसका अभाव कहना शक्य नहीं है, अर्पित और अनर्पित रूपसे सिद्धि होती है इसका सर्वत्र प्रतिषेधका अभाव है । अथवा इस विषयमें अल्पतरसंक्रम ही होता है ऐसा सूत्रकारका अभिप्राय है।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतरकाल साधिक छयासठ सागर प्रमाण कथन करने वाले सूत्रसे जाना जाता है। अन्यथा कुछ कम छयासठ सागर कालका प्रसंग प्राप्त होता है।
ऐसा होने पर सम्यग्मिथ्यात्वके असंख्यातभागवृद्धिसंक्रमका विषय क्या है ऐसा पूछने पर मिथ्यात्वमें जाकर अधःप्रवृत्तसंक्रम करनेवाले जीवके सम्यक्त्वके अभिमुख होने की अवस्था होने पर अन्तर्मुहूर्तकालके भीतर परिणामवश असंख्यातभागवृद्धिका विषय प्रहण करना चाहिए।
शंका-वहाँ पर असंख्वातभागवृद्धिसंक्रम होता है यह किस प्रमाण से जाना जाता है ?
समाधान- सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानिका कथन करनेवाले स्वामित्वविषयक सूत्रसे जाना जाता है। . इस प्रकार यह असंख्यातभागवृद्धिका विषय जानना चाहिए । परन्तु असंख्यातभागहानि और अवक्तव्यसंक्रमका विषय मिथ्यात्वके भंगके समान जानना चाहिए, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। किन्तु मिथ्यादृष्टिगुणस्थानमें भी जब तक उद्वेलना द्विचरम काण्डककी अन्तिम फालि है तब तक असंख्यातभागहानिका विषय कहना चाहिए।