Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८
उत्तरपडिपदेससंकमे पदणिक्खेवो ६७०३. एत्य कारणं वुच्चदे-सव्वसंकमादो तदणंतरसमयतप्पाओग्गजहण्णणवकबंधसंकमदव्वे सोहिदे सुद्धसेसमुक्कस्सहाणिपमाणं होइ । एदं चेवुक्कस्सावट्ठाणपमाणं पि, से काले तत्तियं चेव संकामेमाणयम्मि तदविरोहादो । एदं च पुचिल्लदव्वादो विसेसाहियं, तत्थ सोहिज्जमाणदुचरिमसमयअधापवत्तसंकमदव्वादो? एत्थ सोहिजणवकबंधसंकमस्स संखेजगुणहीणत्तदंसणादो।
* एवं माण-मायासंजलण-पुरिसवेदाणं । ६७०४. सुगममेदमप्पणासुत्तं ।
* लोहसंजलणस्स सव्वत्थोवमुक्कस्समवहाणं ।
६७०५. कि पमाणमेदमवट्ठिदद ? असंखेजसमयपबद्धपमाणमेदं । कि कारणं ? तप्पाओग्गुकस्सअधापवत्तसंकमेण वहिदावद्विदम्मि वहिणिमित्तमूलदव्वेण सहावट्ठाणभुवगमादो। तदो दिवड्डगुणहाणिमेतसमयपबद्धाणमधापवत्तभागहारपडिमागेणासंखेअदिभागमेत्तं होदण सब त्योवमेदं ति घेत्तव्वं ।
ॐ हाणी विसेसाहिया।
६७०३. यहाँ पर कारणका कथन करते हैं-सर्वसंक्रममें से तदनन्तर समयमें हुए तत्प्रायोग्य जघन्य नवकबन्ध सम्बन्धी संक्रमद्रव्यके घटाने पर जो शुद्ध शेष बचे उतना उत्कृष्ट हानिका प्रमाण होता है और यही उत्कृष्ट अवस्थानका प्रमाण भी होता है, क्योंकि तदनन्तर समयमें उतने ही द्रव्यका संक्रम कराने पर अवस्थान द्रव्यके उतने ही प्राप्त होने में कोई विरोध नहीं आता।
और यह पहलेके द्रव्यसे विशेष अधिक है, क्योंकि वहाँ पर घटाये गये द्विचरम समयसम्बन्धी अधःप्रवृत्तसंक्रमद्रव्यसे यहाँ पर घटाये जानेवाले नवकबन्धका संक्रम संख्यातगुणा हीन देखा जाता है।
* इसी प्रकार मानसंज्वलन, मायासंज्वलन और पुरुषवेदका अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
६७.४. यह अर्पणासूत्र सुगम है। * लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक है।
७०५. शंका- इस अवस्थित द्रव्यका क्या प्रमाण है ?
समाधान-इसका प्रमाण असंख्यात समयप्रबद्ध है, क्योंकि तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा वृद्धिकर अवस्थित होनेपर वृद्धि के निमित्तभूत मूलद्रव्यके साथ अवस्थान स्वीकार किया है । इसालए डढ़ गुणहानिप्रमाण समयप्रबद्धौंका अधःप्रवृत्त भागहार द्वारा प्रतिभागरूपसे असंख्यातवाँ भाग होकर यह सबसे स्तोक है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
* उससे हानि विशेष अधिक है।
१ आ. प्रतौ-संकमादो दव्वादो इति पाठः ।