Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उत्तरपयडिपदेस कमे पदणिक्खेवो
* सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा जहणिया हाणी ।
$ ७१०. किं कारणं ? खबिद कम्मं सियदुच रिमुव्वेल्ल णखंडयं चरिमफालीए पडिलद्धभावत्तदो ।
गा० ५८ ]
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* वड्डी असंखेज्जगुणा ।
६ ७११. कुदो ? सम्मत्तस्स चरिमुव्वेन्लणखंडयपढमफालीए गुणसंकमेण जहण्णभावपडिलंभादो । सम्मा मिच्छत्तस्स विदुचरिमुव्वेल्लणखंडयचरिमफालिं संका मिय सम्मत्तं पडवण्णस्स पढमसमये विज्झादसंकमेण जहण्णसामित्तदंसणादो ।
* इत्थि - णवुंसयवेद-हस्स-रह- अरइ-सोगाणं सव्वत्थोवा जहरिणया हाणी |
९ ७१२. किं कारणं ९ खविद कम्मंसियलक्खणेणागंतूण एइ दिएसु पलिदोवमस्स असंखेअदिभागमेत्तकालं गालिय पुणो सष्णिपंचिदिएसुप्पजिय पडिवक्खबंधगद्ध बोलाविय सगबंधपारंभादो आवलियचरिमसमये वट्टमाणस्स गलिद से सजहण्णसंत कम्म विसय, अधापवत्तसंकमेण पडिलद्धजहण्णभावत्तादो ।
* वड्ढो विसेसाहिया ।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य हानि सबसे स्तोक है
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६७१०. क्योंकि क्षपितकर्माशिक जीवके द्विचरम उद्वेलना काण्डककी अन्तिम फालिसे सम्बन्ध रखनेवाला इसका जघन्यपना है ।
* उससे वृद्धि असंख्यातगुणी है ।
६ ७११. क्योंकि सम्यक्त्वके अन्तिम उद्वेलना काण्डककी प्रथम फालिका गुणसंक्रम आश्रयसे जघन्यपना उपलब्ध होता है । तथा सम्यग्मिथ्यात्व के भी द्विचरम उद्वेलना काण्डककी अन्तिम फालिको संक्रमा कर सम्यक्त्वको प्राप्त हुए जीवके प्रथम समयमें विध्यात संक्रमके द्वारा जघन्यपना देखा जाता है ।
. स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी जघन्य हानि सबसे स्तोक है।
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६७१२. क्योंकि क्षपितकर्मा शिकलक्षणसे आकर एकेन्द्रियोंमें पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण कालको गलाकर पुनः संज्ञी पञ्चेन्द्रियों में उत्पन्न होकर प्रतिपक्ष बन्धककालको बिताकर अपने बन्धके प्रारम्भ होनेके बाद एक आवलिके अन्तिम समयमें विद्यमान हुए जीवके गलकर शेप बचे जघन्य सत्कर्मविषयक श्रधः प्रवृत्तसंक्रमके आश्रयसे जघन्यपनेका सम्बन्ध पाया जाता है ।
* उससे वृद्धि विशेष अधिक है ।