Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३६२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ पदेससंकमो होइ । तस्सेव उक्कस्सवहिसामित्तमवहारेयव्वं, तत्थ किंचूणसव्यसंकमदबस्स उक्कस्सवविसरूवेण संकंतिदंसणादो।
तस्सेव से काले उक्कस्सिथा हाणी। ६६३६. तस्सेवाणंतरणिहिट्ठवडिसामियस्स तदणंतरसमए उक्कस्सिया हाणी होइ ति सामित्तसंबंधो काययो । कधं तत्थ हाणीए उकस्सभावो चे १ वुच्चदे-चिरोणसंतकम्मचरिमफालिं सबसंकमेण संकामिय तदणंतरसमए णवकबंधसंकममाढवेदि । तेण कारणेण तत्थुक्कस्सहाणिसामित्तसंबंधो ण विरुज्झदे । एत्थोवजोगिविसेसंतरपदुप्पायण?मुत्तरसुत्तमाह
ॐणवरि से काले संकमपाओग्गा समयपषडा जहपणा कायव्वा ।
६६४०. सव्वुक्कस्सपदेससंकमादो हाइदूण सुट्ट जहण्णपदेससंकमे पारद्धे उक्कस्सिया हाणी होइ, णाण्णहा । तदो सव्वुकस्सहाणिसंकमग्गहणटुं से काले संकमपाओग्गा णवकबंधसमयपबद्धा जहण्णा कायव्वा ति एदस्सस्थविसेसस्स परूवणं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
*तं जहा।
चाहिए, क्योंकि वहाँ पर कुछ कम सर्वसंक्रमद्रव्यका उत्कृष्ट बृद्धिरूपसे संक्रम देखा जाता है ।
* उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट हानि होती है।
६६३६. जिस जीवके पूर्व में संज्वलन क्रोधकी उत्कृष्ट वृद्धिके स्वामीका निर्देश किया है उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट हानि होती है इस प्रकार यहाँ पर स्वामित्वका सम्बन्ध करना चाहिए।
शंका-वहाँ उत्कृष्ट हानि कैसे सम्भव है ?
समाधान—क्योंकि प्राचीन सत्कर्मकी अन्तिम फालिका सर्वसंक्रमके द्वारा संक्रम करके तदनन्तर समयमें नवकबन्धके संक्रमका प्रारम्भ करता है, इस कारणसे वहाँ पर उत्कृष्ट हानिका स्वामित्व सम्बन्ध विरोधको प्राप्त नहीं होता। अब यहाँ पर उपयोगी दूसरी विशेषताका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* किन्तु इतनी विशेषता है कि तदनन्तर समयमें संक्रमके योग्य समयप्रबद्धोंको जघन्य करना चाहिए।
६६४०. क्योंकि सबसे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमसे घटाकर अति कम जघन्य प्रदेशसंक्रमका प्रारम्भ करने पर उत्कृष्ट हानि होती है, अन्यथा नहीं। इसलिए सबसे उत्कृष्ट हानि संक्रमको ग्रहण करनेके लिए तदनन्तर समयमें संक्रमके योग्य नवकबन्ध समयप्रबद्धोंको जघन्य करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है । वे समयप्रबद्ध कितने हैं अथवा उन्हें जघन्य कैसे करना चाहिए इस प्रकार इस अर्थविशेषका कथन करते हुए आगेका सूत्र कहते हैं
* यथा।