Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ आगंतूण मणुसेसुप्पन्जिय गम्भादिअट्ठवस्साणमुवरि पढमदाए कसायउवसामणाए उवविदो। एत्थ पढमदाए कसायउवसामणाए त्ति वयणं विदियादिकसायोवसामणाणं पडिसेहकरणटुं। तं पि गुणसंक्रमेण गच्छमाणदत्रपरिरक्खणट्ठमिदि घेत्तव्यं, अण्णहा गुणसंकमेण पयदकम्माणं बहुदवहोणिप्पसंगादो । तस्स कदमम्मि? अवत्थाविसेसे सामित्तसंबंधो ति वुत्ते बुच्चदे-जाधे दुविहस्स कोहस्स गुणसंक्रमेण संकामिजमाणयस्स चरिमसमयसंकामओ जादो, तदो से काले मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवपजाए वट्टमाणयस्स पयदुक्कस्ससामित्ताहिसंबंधो । तत्थ गुणसंकमादो अधापवत्तसंकमेण परिणदस्स हाणीए उकस्समावदसणादो। तप्पाओगजहण्णअधापवत्तसंकमदव्ये सव्वुक्कस्सगुणसंकमदबादो सोहिदे सुद्धसेसदनपडिबद्धमेदमुक्कस्सहाणिसामित्तमिदि णिच्छेयव्वं ।
® एवं दुविहमाण-दुविहमाया-दुविहलोहाणं ।
६६३३. कुदो ? चरिमसमयगणसंकमादो अधापेवत्तसंक्रमपजाएण परिणदपढमसमयदेवम्मि सामित्तं पडि विसेसाभावादो। थोषयरो दु विसेससंभवो अत्थि ति तप्पदुप्पायणट्ठमुत्तरसुत्तमोइण्णं
गुणितकर्मा शिक जीव न्यूनाधिकतासे रहित गुणित क्रियाके द्वारा आकर और मनुष्योंमें उत्पन्न होकर गर्भसे लेकर आठ वर्षके बाद सर्व प्रथम कषायोंकी उपशामना करनेके लिए उद्यत हुआ। यहाँ पर 'पेढमदाए कसायउवसामणाए' यह वचन द्वितीय आदि बार कषायोंकी उपशामनाका प्रतिषेध करने के लिए दिया है। वह भी गणसंक्रमके द्वारा जानेवाले द्रव्यकी रक्षा करनेके लिए दिया है ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए, अन्यथा गुणसंक्रमके द्वारा प्रकृत कर्मो के बहुत द्रव्यको हानिका प्रसंग आता है। उसका किस अवस्थाविशेषमें स्वामित्वका सम्बन्ध है ऐसा पूछने पर कहते हैं-जब दो प्रकारके क्रोधका गुणसंक्रमके द्वार। संक्रम करते हुए अन्तिम समयवर्ती संक्रामक हुआ, फिर तदनन्तर समयमें मरकर देव हो गया उसके प्रथम समयसम्बन्धी देवपर्यायमें रहते हुए प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वका सम्बन्ध होता है, क्योंकि वहाँ पर गुणसंक्रमसे अधःप्रवृत्तसंक्रमरूपसे परिणत हुए जीवके हानिका उत्कृष्टपना देखा जाता है। तत्प्रायोग्य जघन्य अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्रव्यको सबसे उत्कृष्ट गुणसंक्रमके द्रव्यमेंसे घटाने पर शुद्ध शेष द्रव्यसे सम्बन्ध रखनेवाला यह उत्कृष्ट हानिविषयक स्वामित्व है ऐसा यहाँ पर निश्चय करना चाहिए।
* इसी प्रकार दो प्रकारके मान, दो प्रकारकी माया और दो प्रकारके लोभकी उत्कृष्ट हानिका स्वामित्व है।
६६३३. क्योंकि अन्तिम समयसम्बन्धी गुणसंक्रमसे अधःप्रवृत्तसंक्रमपर्यायरूपसे परिणत हुए प्रथम समयवर्ती देवके स्वामित्वकी अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है। किन्तु कुछ थोड़ीसी विशेषता सम्भव है, इसलिए उसका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र अवतीर्ण हुआ है
१ आ. प्रतौ कददव्वस्स ता.प्रतौ कदमम्मि (१) इति पाठः ।