Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३६६ जयधबलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६६५१. सुगमं । * गुणिदकम्मंसियस्स सव्वसंकामयस्स।
६६५२. गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण खरगसेढिमारुहिय सव्वसंकमेण परिणदम्मि सव्वुक्कस्सवद्विसंभवं पडिविरोहाभावादो।
* उक्कस्सिया हाणी कस्स ? ६६५३. सुगमं ।
* गुणिदकम्मंसिओ पढमदाए कसाए उवसामेमाणो भय-दुगुंछासु चरिमसमयअणुवसंतासु से काले मदो देवो जादो, तस्स पढमसमयदेवस्स उक्कस्सिया हाणी।
६६५४. गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण पढमवारं कसायोवसामणं पट्टविय तत्थ भयदुगु'छासु चरिमसमयअणुवसंतासु सबुक्कस्सगुणसंक्रमेण परिणमिय तत्तो से काले कालं कादूण देवेसुप्पण्णस्स पढमसमए पयदुक्कस्सहाणिसामित्तं होइ, सव्वुक्कस्सगुणसंकमादो अधापवत्तसंकमेण परिणदम्मि तदविरोहादो ।
* उक्कस्सयमवहाणमपच्चक्खाणावरणभंगो। ६६५५. सुगममेदमप्पणासुत्तं ।
६ ६५१. यह सूत्र सुगम है। * सवेसंक्रामक गणितकर्मा शिक जीवके होती है।
६६५२, क्योंकि गुणितकर्मा शिक लक्षणसे आकर और क्षपकनेणि पर आरोहण कर सर्वसंक्रमरूपसे परिणत होने पर सबसे उत्कृष्ट वृद्धि के सम्भव होने में कोई विरोध नहीं आता।
* उत्कृष्ट हालि किसके होती है ? ६ ६५.३. यह सूत्र सुगम है।
* जो गणितका शिक जीव प्रथम बार कषायोंका उपशम करता हुआ भय और जुगप्साका अन्तिम समयमें उपशम किये बिना अनातर समयमें मरकर देव हो गया उस प्रथम समयवर्ती देवके उत्कृष्ट हानि होती है।
६६५४. गुणितकर्मा शिकलक्षणसे आकर और प्रथम बार कषायोंकी उपशामनाकी प्रस्थापना कर वहाँ भय और जुगुप्साके अन्तिम समयमें अनुपशान्त रहते हुए जो सर्वोत्कृष्ट गुणसंक्रमरूपसे परिणमन कर उसके बाद तदनन्तर समयमें मरकर देवोंमें उत्पन्न हुआ उसके प्रथम समयमें प्रकृत उत्कृष्ट हानिका स्वामित्व होता है, क्योंकि सबसे उत्कृष्ट गुणसंक्रमके बाद अधःप्रवृत्तरूपसे परिणत होने पर उसके होने में कोई विरोध नहीं आता।
* उत्कृष्ट अवस्थानका भङ्ग अप्रत्याख्यानावरणके समान है। ६६५५. यह अर्पणा सूत्र सुगम है ।