Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८]
उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो ६६४८. सुगम।
* गुणिदकम्मसियो तिणि वारे कसाए उवसामेऊण चउत्थीए उवसामणाए उवसामेमाणो अंतरे चरिमसमय-अकदे से काले मदो देवो जादो, तस्स समयाहियावलियउववएणयस्स उक्कस्सिया हाणी।
६६४६. एदस्सत्थो वुच्चदे–जो गुणिदकम्मंसिओ चदुक्खुत्तो कसाए उवसामेमाणो तत्थ तिणि वारे वोलाविय चउत्थीए उवसामणाए अंतरकरणमाढविय से काले अंतरं पिल्लेविहिदि ति कालं कादूण देवेसुववण्णो तस्स समयाहियावलियदेवस्स पयदुक्कस्सहाणिसामित्तं दद्वन्वं । किं कारणं ? अंतरचरिमफालीए गच्छमाणाए पडिच्छिदगुणसंकमदव्यं तत्कालियणवकबंधेण सहिदमावलियदेवभावेण संकामिय पुणो तदणंतरसमए पढमसमयदेवोववादजोगेण बद्धणत्रकबंधसमयपबद्धमधापवत्तसंकमेण तत्थ पडिच्छिददव्वेण सह संकामेमाणयस्स सव्वुक्कस्सहाणीए विरोहामावादो।
8 उकस्संयमवट्ठाणमपच्चक्खाणावरणभंगो। ६६५०. सुगमं।
* भय-दुगुंछाणमुक्कस्सिया वड्डी कस्स ? ६६४८. यह सूत्र सुगम है।
* जो गुणितकर्मा शिक जीव तीन बार कषायोंको उपशमाकर चौथी उपशामनाके द्वारा उपशम करता हुआ अन्तिम समयमें होनेवाले अन्तरको किये बिना तदनन्तर समयमें मरा और देव हो गया उसके उत्पन्न होनेके एक समय अधिक एक आवलि होने पर उत्कृष्ट हानि होती है।
६६४६. इस सूत्रका अर्थ कहते है-जो गुणितकर्माशिक जीव चार बार कषायोंकी उपशामना करता हुआ उनमेंसे तीन बारोंको बिताकर चौथी उपशामनामें अन्तरकरणका प्रारम्भ कर तदनन्तर समयमें अन्तरको समाप्त करेगा कि मरकर देवोंमें उत्पन्न हुआ उस देवके एक समय अधिक एक श्रावलि काल होने पर प्रकृत उत्कृष्ट हानिका स्वामित्व जानना चाहिए।
शंका-क्या कारण है ? .
समाधान-क्योंकि अन्तरकी अन्तिम फालिके जाते हुए संक्रमको प्राप्त हुए गुणसंक्रमके द्रव्यको तत्कालीन नवकबन्धके साथ एक आवलि कालतक देवभावके साथ संक्रमित कर पुनः तदनन्तर समयमें प्रथम समयवर्ती देवके उपपादयोगके साथ बँधे हुए नवकबन्धके समयप्रबद्धको अधःप्रवृत्त संक्रमके द्वारा वहाँ संक्रमित किये गये द्रव्यके साथ संक्रम करनेवाले जीवके सबसे उत्कृष्ट हानि होनेमें विरोधको अभाव है।
* उत्कृष्ट अवस्थानका भङ्ग अप्रत्याख्यानावरणके समान है। ६६५०. यह सूत्र सुगम है। * भय और जुगुप्साको उत्कृष्ट धृद्धि किसके होती है ?