Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे पदणिवखेवो
३०१ ॐ सामित्तं ।
६६०७. एत्तो उवरि सामित्तमहिकयं ति दट्टव्वं । तं पुण सामित्तं दुविहं-जहण्णयमुक्कस्सयं च । तत्थुक्कस्से ताव पयदं । तत्थ दुविहो णिद्द सो ओघादेसमेएण । तत्थोघपरूवणट्ठमुत्तरो सुत्तपबंधो।
* मिच्छत्तस्स उक्कस्सिया वढी कस्स ? ६६०८. सुगमं । * गुणिदकम्मंसियस्स मिच्छत्तक्खवयस्स सव्वसंकामयस्स ।
६६०६. जो गुणिदकम्मंसियो सत्तमाए पुढवीए णेरइयो तत्तो उव्यट्टिदूण सव्वलहुं समयाविरोहेण मणुसेसुप्पन्जिय गम्भादिअदुवस्साणि गमिय तदो दंसणमोहक्खवणाए अब्भुद्विदो तस्स अणियट्टिअद्धाए संखेजेसु भागेसु गदेसु मिच्छत्तचरिमफालिं सव्वसंकमेण संछुहमाणयस्स पयदुक्कस्ससा मित्तं होइ । तत्थ किचूणदिवड्ढगुणहाणिमेत्तसमयपबद्धाणमुक्कस्सवडिढसरूवेण संकमदंसणादो ।
* उक्कस्सिया हाणी कस्स ? ६६१०. सुगम । * गुणिदकम्मंसियस्स सम्मत्तमुप्पाएदूण गुणसंकमेण संकामिदूण * स्वामित्वका अधिकार है।
६६०७. इससे आगे स्वामित्वका अधिकार है ऐसा, जानना चाहिए । वह स्वामित्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उनमेंसे सर्व प्रथम उत्कृष्टका प्रकरण है। उसके विषयमें ओघ और आदेशसे निर्देश दो प्रकारका है । उनमेंसे ओघका कथन करने के लिए आगेका सूत्रप्रवन्ध है
* मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ६६०८. यह सूत्र सुगम है।
* जो गुणितकर्मा शिक मिथ्यात्वका क्षपक जीव सर्वसंक्रम कर रहा है उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है ।
६६०६. जो गुणितकर्मा शिक सातवीं पृथिवीका नारकी जीव वहाँसे निकलकर अतिशीघ्र समयके अविरोध पूर्वक मनुष्योंमें उत्पन्न होकर और गर्भसे लेकर आठ वर्ष बिताकर अनन्तर दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके लिए उद्यत हुआ उसके अनिवृत्तिकरणके कालके संख्यात बहुभाग व्यतीत होनेपर मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिका सर्वसंक्रमके द्वारा संक्रम करते हुए प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है, क्योंकि वहाँ पर कुछ कम डेढ़ गुणहानिप्रमाण समयप्रबन्धोंका उत्कृष्ट वृद्धि रूपसे संक्रम देखा जाता है।
* उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ६६१०. यह सूत्र सुगम है। * जो गणितकर्मा शिक जीव सम्यक्त्वको उत्पन्न कर गुणसंक्रमके द्वारा संक्रम