Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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३८६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
(बंधगो ६ सेढीए सम्मामिच्छत्तादो सम्मत्तसरूवेण संकमपवुत्तीए वाहाणुवलंभादो। किंतु तहा संक्रममाणसम्मामिच्छत्तदव्यस्स पडिभागो अंगुलस्सासंखेजदिभागो। कुदो एदमवगम्मदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो। एवं च संते तत्तो विज्झादसंकमे पदिदस्स उक्कस्सिया हाणी ण होइ, बिज्झाद-गुणसंकमादो विज्झादसंकमेण परिणदम्मि सव्वुक्क स्सियाए हाणीए संभवविरोहादो। तदो एदं मोत्तग विसयंतरे सामित्ताविहाणेण होदव्वमिदि । एवं च कयणिच्छयो तण्णिद्द सकरणट्ठमुत्तरसुत्तमाह
* गुणिदकम्मंसिओ संम्मत्तमुप्पाएदूण लहुं चेव मिच्छत्तं गवो, ज़हरिणयाए मिच्छत्तद्धाए पुगणाए सम्मत्तं पडिवगणो, तस्स पढमसमयसम्माइडिस्स उक्कस्सिया हाणी।
६६२२. एदस्स साभित्तसुत्तस्स अत्थो बुच्चदे । तं जहा–गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सम्मत्तमुप्पाइय सव्वुकस्सगणसंकमेण सम्मामिच्छत्तमावरिय तदो लहुं चेव मिच्छत्तमुवगओ । किमट्ठमेसो मिच्छत्तमुवणिजदे ? अधापवत्तसंकमेण बहुदव्यसंक्रमं कादूण तत्तो सम्मत्तं पडिवण्णस्स पढमसमए विज्झादसंकमेणुकस्सहाणिसामित्तविहाणटुं। सेसं असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे सम्यग्मिथ्यात्वके द्रव्यमेंसे सम्यक्त्वरूपसे संक्रमकी प्रवृत्ति होने पर भी कोई बाधा नहीं उपलब्ध होती । किन्तु इस प्रकारसे संक्रमको प्राप्त होनेवाले सम्यग्मिथ्यात्वके द्रव्यका प्रतिभाग अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है ।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-इसी सूत्रसे जाना जाता है।
और ऐसा होने पर उसके बाद विध्यातसंक्रममें पतित हुए उसकी उत्कृष्ट हानि नहीं होती, क्योंकि विध्यात और गुणसंक्रमसे विध्यातसंक्रमरूपसे परिणत होने पर सर्वोत्कृष्ट हानिके सम्भव होनेमें विरोध है। इसलिए इसे छोड़कर दूसरे स्थल पर स्वामित्वका विधान होना चाहिए इस प्रकार उक्त प्रकारका निश्चय करके उसका निर्देश करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं___* जो गुणितकर्मा शिक जीव सम्यक्त्वको उत्पन्न कर अतिशीघ्र मिथ्यात्वमें गया । पुनः जघन्य मिथ्यात्वके कालके पूर्ण होने पर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ, उस प्रथम समयवर्ती सम्यग्दृष्टिके उत्कृष्ट हानि होती है।
६ ६२२. इस स्वामित्व सूत्रका, अर्थ कहते हैं। यथा-गुणितकर्मा शिकलक्षणसे आकर सम्यक्त्वको उत्पन्न कर सर्वोत्कृष्ट गुणसंक्रमके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वको पूरा कर अनन्तर अतिशीघ्र मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ।
शंका-यह मिथ्यात्वको किसलिए प्राप्त कराया जाता है ?
समाधान-अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा बहुत द्रव्यका संक्रम करके अनन्तर सम्यक्त्वको प्राप्त हुए जीवके प्रथम समयमें विध्यातसंक्रमके द्वारा उत्कृष्ट हानिके स्वामित्वका विधान करनेके लिए इसे सर्व प्रथम मिथ्यात्वको प्राप्त कराया जाता है ।