Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिपदेससंकमे पदणिक्खेवो
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हादिव्वादो एत्थतणहाणिदव्यस्सासंखेञ्जगुणत्तदंसणादो । तदो पुत्रिल्लविसयं मोत्तूत्थे सामितेण होदव्यमिदि ?ण एस दोसो, परिणामविसेसमस्सिऊण पयट्टमाणस्स संकमस्स बिदियसमयं मोत्तूण उवरि अनंतगुणसंकिलेसविसए बहुत्तविरोहादो । कुदो एदं road ? म्हादो चै सुत्तादो |
* सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्सिया वड्डो कस्स ? ६६१८. सुगममेदं पुच्छावक ।
* गुणिदकम्मंसियस्स सव्वसंकामयस्स ।
६ ६१६. एदस्स सुत्तस्स अत्थपरूवणाए मिच्छत्तभंगो । * उक्कस्सिया हाणी कस्स ?
६२०. सुगमं ।
* उप्पादिदे सम्मत्ते सम्मामिच्छात्तादो सम्मत्ते जं संकामेदि तं पदेसग्गमंगुलस्सासंखेज्जभाग पडिभागं । तदोउक्क सिसयाहाणी ण होदि ति ।
९ ६२१. एदस्साहिप्पाओ उवसमसम्मत्ते समुप्पादिदे मिच्छत्तस्सेव सम्मामिच्छत्तस्स वि गुणसंकमो अस्थि चैत्र, उवसमसम्मत्त विदिय समय प्पहुडि पडिसमयमसंखेजगुणाए क्योंकि पूर्वोक्त हानि द्रव्यसे यहाँ पर प्राप्त हुआ हानि द्रव्य असंख्यातगुणा देखा जाता है । इस लिए पूर्वोक्त विषयको छोड़कर यहाँ पर ही स्वामित्व होना चाहिए ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि परिणामविशेषका आश्रय कर प्रवर्तमान हुए संक्रमका दूसरे समय के सिवा श्रागे अनन्तगुणे संक्लेश के सद्भाव में बहुत होने का विरोध है । शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान —- इसी सूत्र से जाना जाता है ।
* सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ६१८. यह पृच्छावाक्य सुगम है ।
* सर्वसंक्रम करनेवाले गुणितकर्माशिक जीवके होती है ।
६१. इस सूत्र की अर्थप्ररूपणा, जिस प्रकार मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि के स्वामीके प्रतिपादक सूत्रकी अर्थप्ररूपणा कर आये हैं, उसके समान है ।
* उत्कृष्ट हानि किसके होती है ?
६२०. यह सूत्र सुगम हैं ।
* सम्यक्त्वको उत्पन्न करने पर सम्यग्मिथ्यात्व से सम्यक्त्वमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह द्रव्य अंगुल असंख्यातवें भागरूप भागहारसे लब्ध होता है, इसलिए यहाँ परे उत्कृष्ट हानि नहीं होती है ।
६६२१. इन सूत्रका अभिप्राय - उपशमसम्यक्त्वके उत्पन्न करने पर मिथ्यात्व के समान सम्यग्मिथ्यात्वका गुणसंक्रम है ही, क्योंकि उपशम सम्यक्त्वके दूसरे समय से लेकर प्रत्येक समय में
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