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________________ गा० ५८ ] उत्तरपयडिपदेससंकमे पदणिक्खेवो ३८५ हादिव्वादो एत्थतणहाणिदव्यस्सासंखेञ्जगुणत्तदंसणादो । तदो पुत्रिल्लविसयं मोत्तूत्थे सामितेण होदव्यमिदि ?ण एस दोसो, परिणामविसेसमस्सिऊण पयट्टमाणस्स संकमस्स बिदियसमयं मोत्तूण उवरि अनंतगुणसंकिलेसविसए बहुत्तविरोहादो । कुदो एदं road ? म्हादो चै सुत्तादो | * सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्सिया वड्डो कस्स ? ६६१८. सुगममेदं पुच्छावक । * गुणिदकम्मंसियस्स सव्वसंकामयस्स । ६ ६१६. एदस्स सुत्तस्स अत्थपरूवणाए मिच्छत्तभंगो । * उक्कस्सिया हाणी कस्स ? ६२०. सुगमं । * उप्पादिदे सम्मत्ते सम्मामिच्छात्तादो सम्मत्ते जं संकामेदि तं पदेसग्गमंगुलस्सासंखेज्जभाग पडिभागं । तदोउक्क सिसयाहाणी ण होदि ति । ९ ६२१. एदस्साहिप्पाओ उवसमसम्मत्ते समुप्पादिदे मिच्छत्तस्सेव सम्मामिच्छत्तस्स वि गुणसंकमो अस्थि चैत्र, उवसमसम्मत्त विदिय समय प्पहुडि पडिसमयमसंखेजगुणाए क्योंकि पूर्वोक्त हानि द्रव्यसे यहाँ पर प्राप्त हुआ हानि द्रव्य असंख्यातगुणा देखा जाता है । इस लिए पूर्वोक्त विषयको छोड़कर यहाँ पर ही स्वामित्व होना चाहिए ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि परिणामविशेषका आश्रय कर प्रवर्तमान हुए संक्रमका दूसरे समय के सिवा श्रागे अनन्तगुणे संक्लेश के सद्भाव में बहुत होने का विरोध है । शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान —- इसी सूत्र से जाना जाता है । * सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ६१८. यह पृच्छावाक्य सुगम है । * सर्वसंक्रम करनेवाले गुणितकर्माशिक जीवके होती है । ६१. इस सूत्र की अर्थप्ररूपणा, जिस प्रकार मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि के स्वामीके प्रतिपादक सूत्रकी अर्थप्ररूपणा कर आये हैं, उसके समान है । * उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ६२०. यह सूत्र सुगम हैं । * सम्यक्त्वको उत्पन्न करने पर सम्यग्मिथ्यात्व से सम्यक्त्वमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह द्रव्य अंगुल असंख्यातवें भागरूप भागहारसे लब्ध होता है, इसलिए यहाँ परे उत्कृष्ट हानि नहीं होती है । ६६२१. इन सूत्रका अभिप्राय - उपशमसम्यक्त्वके उत्पन्न करने पर मिथ्यात्व के समान सम्यग्मिथ्यात्वका गुणसंक्रम है ही, क्योंकि उपशम सम्यक्त्वके दूसरे समय से लेकर प्रत्येक समय में ૪૬.
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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