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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ सम्मत्तमावरिय तदो मिच्छत्तं पडिवजिय सव्वरहस्सेणुव्वेल्लणकालेणुव्वेल्लमाणयस्स चरिम. विदिखंडयचरिमसमए पयदुक्कस्ससामित्तं होइ । तत्थ किंचूणसव्वसंकमदव्वमेत्तस्स उक्कस्सवड्डिसरूवेणुवलद्धीदो।
* उक्कस्सिया हाणी कस्स ? ६६१६. सुगमं ।
* गुणिदकम्मंसियो सम्मत्तमुप्पाएदूण लहुं मिच्छत्तं गो तस्स मिच्छाइहिस्स पढमसमए अवत्तव्वसंकमो विदियसमये उक्कसिया हाणी ।
६६१७. एदस्स सुत्तस्स अत्थो वुच्चदे-जो गुणिदकम्मंसियो अंतोमुहुत्तेण कम्म गुणेहदि त्ति विवरीयं गंतूण सम्मत्तमुप्पाइय सव्वुकस्सियाए पूरणाए सम्मत्तमावरिय तदो सव्वलहु मिच्छत्तं गदो तस्स बिदियसमयमिच्छाइद्विस्स उक्कस्सिया सम्मत्तपदेससंकमहाणी होइ । कुदो ? तत्थ पढमसमय-अधापवत्तसंकमादो अवत्तव्यसरूवादो विदियसमए हीयमाणसंकमदव्यस्स उवरिमासेसहाणिदव्वं पेक्खिऊण बहुत्तोवलंभादो। एत्थ चोदओ भणइ–णेदमुक्कस्सहाणिसामित्तं घडदे, एत्तो अण्णस्स हाणिदव्वस्स बहुत्तोवलंभादो । तं जहा-गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सम्मत्तमुप्पाइय मिच्छत्तं गंतूर्णतोमुहुत्तमधापवत्तसंकम कादण तदो उव्वेल्लणसंकमेण परिणदस्स पढमसमए उक्कस्सिया हाणी कायद्या, पुबिल्ल
पूरणाके द्वारा सम्यक्त्वको पूर कर अनन्तर मिथ्यात्वमें जाकर सबसे लघु उद्वेलना कालके द्वारा उद्वेलना करनेवाले जीवके अन्तिम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयमें प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है. क्योंकि वहाँ पर कुछ कम सर्वसंक्रम प्रमाण द्रव्यकी उत्कृष्ट वृद्धिरूपसे उपलब्धि होती है।
* इसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ६ ६१६. यह सूत्र सुगम है।
* जो गणितकर्मा शिक जीव सम्यक्त्वको उत्पन्न कर अतिशीघ्र मिथ्यात्वमें गया उस मिथ्यादृष्टि जीवके प्रथम समयमें अवक्तव्यसंक्रम होता है और दूसरे समयमें उत्कृष्ट हानि होती है।
६६१७. इस सूत्रका अर्थ कहते हैं-जो गुणितकर्माशिक जीव अन्तर्मुहूर्त के द्वारा कर्मको गुणित करेगा; किन्तु विपरीत जाकर और सम्यक्त्वको उत्पन्न कर सर्वोत्कृष्ट पूरणाके द्वारा सम्यक्त्वको पूरकर अनन्तर अतिशीघ्र मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ उस द्वितीय समयवर्ती मिथ्यादृष्टि जीवके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम हानि होती है, क्योंकि वहाँ पर प्रथम समयमें होनेवाले अवक्तव्यरूप अधः प्रवृत्त संक्रमसे दूसरे समयमें हीयमान संक्रम द्रव्य उपरिम समस्त हानिरूप द्रव्यको देखते हुए वहुत उपलब्ध होता है।
- शंका-यहाँ पर शंकाकार कहता है कि यह उत्कृष्ट हानिका स्वामित्व घटित नहीं होता, क्योंकि इससे अन्य हानि द्रव्य बहुत उपलब्ध होता है । यथा-गुणित कांशिक लक्षणसे आकर और सम्यक्त्वको उत्पन्न कर गिथ्यात्वमें जाकर अन्तमुहूर्त काल तक अधःप्रवृत्त संक्रम कर तदनन्तर उद्वेलना संक्रमरूपसे परिणत हुए उसके प्रथम समयमें उत्कृष्ट हानि करनी चाहिए,