Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८
उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो
३८३ विरोहेण वढि कादूण तदियादीणमण्णदरम्हि समए बट्टमाणस्स पयदसामितसंबंधो दहव्यो । तं जहा-तहा सम्मत्तं पडिवण्णस्स पढमसमए अवत्तव्यसंकमो होइ । पुणो विदियसमए तप्पाओग्गुकस्सएण संकमपज्जाएण पट्टिदस्स वडिढसंकमो जायदे । एसो च वड्डिसंकमो समयपबद्धस्सासंखेजदिभागमेत्तो। एवमेदेण तप्पाओग्गुकस्सेणासंखेजदिभागेण बड्डिदण से काले आगमणिज्जराणं सरिसत्तवसेण तत्तियं चेत्र संकामेमाणयस्स तस्स उक्कस्तयमवट्ठाणं होदि । एवं तदियोदिसमएसु वि तप्पाओग्गुकस्सेण संकमपज्जाएण पट्टिदण तदगंतरसमए तत्तियं चेव संकामेमाणयस्स पयदसा मित्तमविरुद्ध णेदव्यं जाय दुचरिमसमए तप्पाओग्गुकस्ससंकमवुड्डीए वढि कादूण? चरिमसमए उकसावट्ठाणपजाए परिणदावलियसम्माइडि ति एत्तियो चेवुकस्सावट्ठाणसामित्तविसए । एत्थ पढमसमयोवत्तव्यसंक्रमादो विदियसमयम्मि तत्तियं चेव संकामेमाणयस्स पयदुक्कस्सावट्ठाणसामित्तं किण्ण गहिदं ? ण, ववि-हाणीणमण्णदरणिबंधणस्स संकमावट्ठाणस्सेह विवक्खियत्तादो।
* सम्मत्तस्स उक्कस्सिया वड्डी कस्स ? ६६१४. सुगमं ।
* उध्वेल्लमाणयस्स चरिमसमए ।
६६१५. गणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सम्मत्तमुप्पाइय सव्वुक्कस्सियाए पूरणाए एक समयमें विद्यमान रहते हुए उसके प्रकृत स्वामित्वका सम्बन्ध जानना चाहिए। यथा-इस प्रकार सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीवके प्रथम समयमें अवक्तव्य संक्रम होता है। पुनः दूसरे समय में तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्रम पर्यायरूपसे रहते हुए उसके वृद्धि संक्रम उत्पन्न होता है। यह वृद्धि संक्रम समयप्रबद्धके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है । इस प्रकार इस तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट
यातव भागरूपले वृद्धि होकर अनन्तर समयमे आय और निर्जराकी समानताके कारण उतने ही द्रव्यका संक्रम करनेवाले उस जीवके उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इसी प्रकार तृतीय आदि समयों में भी त्यायोग्य उत्कृष्ट संक्रम पर्यायसे वृद्धि करके तदनन्तर समयमें उतना ही संक्रम करनेवाले उसके प्रकृत स्वामित्व अविरुद्धरूपसे जानना चाहिए। जो कि द्विचरम समयमें तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्रम वृद्धि के द्वारा वृद्धि करके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट अवस्थान पर्यायरूपसे परिणत हुए आवलि प्रविष्ट सम्यग्दृष्टि जीवके होने तक इतना ही उत्कृष्ट अवस्थानके विषयमें सम्भव है।
शंका- यहाँ प्रथम समयमें हुए अवक्तव्य संक्रमसे दूसरे समयमें उतना ही संक्रम करने वाले जीवके प्रकृत उत्कृष्ट अवस्थान संक्रम क्यों नहीं ग्रहण किया ?
समाधान--नहीं, क्योंकि वृद्धि और हानि इनमे से किसी एकका अवलम्बन लेकर हुश्रा संक्रम अवस्थान यहाँ पर विवक्षित है।
* सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? । ६६१४. यह सूत्र सुगम है।। * उद्वलना करनेवाले जीवके अन्तिम समयमें सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। ६६१५. गुणितकर्मा शिक लक्षणसे आकर और सम्यक्त्वको उत्पन्न कर तथा सर्वोत्कृष्ट १. ता० प्रतौ वडिढदूण इति पाठ ।