Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६५६४. विसंजोयणादो संजुजंतमिच्छाइट्ठीणं जहण्णंतरस्स तप्पमाणत्तादो ।
® उकस्सेण चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । ६५६५. अणंताणुबंधिविसंजोजयाणं व तस्संजोजयाणं पि उक्करसंतरस्स तप्पमाणत्तसिद्धीए विरोहाभावादी।
8 एवं सेसाणं कम्माणं ।
६५६६. सुगममेदमप्पणासुत्तं । एदेण सामण्णणिदेसेणावत्तव्यसंकामयाणं सादिरेय चउवीसअहोरत्तमेत्तुक्कस्संतराइप्पसंगे तण्णिवारणमुहेण तत्थ पयारंतरसंभवपदुप्पायणट्ठमुत्तरसुत्तमोइण्णं ।
ॐ पवरि अवत्तव्यसंकामयाणमुक्कस्सेण वासपुधत्तं ।
६५६७. किं कारणं? सव्वोवसामणापडिवादुक्कस्संतरस्स तप्पमाणत्तोवलंभादो। ण केवलमेत्तियो चेव विसेसो, किंतु अण्णो वि अस्थि ति पदुप्पायणट्ठमुत्तरसुत्तं भणइ
® पुरिसवेदस्स भवद्विवसंकामयंतरं जहएणेण एयसमो । ६८. सुगममेदं। * उकस्सेण असंखेजा लोगा।
६५६४. क्योंकि विसंयोजनाके बाद संयोजनाको प्राप्त होनेवाले मिथ्यादृष्टियोंका जघन्य अन्तरकाल तत्प्रमाण उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस दिन-रात्रि है।
६५६५. क्योंकि अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजना करनेवाले जीवोंके समान उनकी संयोजना करनेवाले जीवोंके भी उत्कृष्ट अन्तरकालके तत्प्रमाण सिद्ध होने में कोई विरोध नहीं आता।
* इसी प्रकार शेष कर्मोंके सम्भव पदोंका अन्तरकाल जानना चाहिए।
६५६६. यह अर्पणासूत्र सुगम है। इस सामान्य निर्देशसे अवक्तव्य संक्रामकोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक चौबीस दिन-रात्रिप्रमाण प्राप्त होनेपर उनके निवारण करनेके द्वारा वहाँपर प्रकारान्तर सम्भव है इस बातका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र आया है।
* इतनी विशेषता है कि अवनव्य संक्रामकोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व प्रमाण है।
६५६७. क्योंकि सर्वोपशामनासे गिरनेका उत्कृष्ट अन्तरकाल तत्प्रमाण उपलब्ध होता है। केवल इतनी ही विशेषता नहीं है, किन्तु अन्य विशेषता भी है इस बातका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* पुरुषवेदके अवस्थित संक्रामकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है। ६५६८. यह सूत्र सुगम है। * उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है ।