Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
वि सत्तरादिदियमेत्तेण होदव्वं, उव्वेल्लणापवेसणाणुसारेणेव तत्तो णिस्सरणस्स णाइयत्तादो ति णासंकणिज ं । किं कारणं १ सम्मत्तादो मिच्छत्तं पडिवण्णसव्वजीवाणमुव्वेल्लणापवेसनियमाभावादो उब्वेल्लणाए पविद्वाणं पि सव्वेंसिमेव णिस्संतीकरणणियमाणन्भुवगमादो च ।
* सम्मामिच्छुत्तस्स भुजगार अवन्तव्वसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
६५५७. सुगमं ।
* जहणणेण एयसमत्र ।
६ ५५८. कुदो ? पयदभुजगारावत्तव्त्रसंकामयणाणाजीवाणमेयसमयमंतरिदाणं पुणो णाणाजीवाणुसंधाणेण तदणंत्तरसमए तहाभावपरिणामाविरोहादो ।
* उक्कस्से सन्त राविंदियाणि ।
६५५६. कुदो ? सम्मत्तप्पादयाणमुकस्संतरस्स वि तन्भाव सिद्धीए पडिबंधाभावाद । देण सामगणिद्द सेणावत्तव्त्रसंकामयाणं पि पमदंतरा इप्पसंगे तत्थ पयारंतरसंभवपदुप्पायणद्वमुत्तरमुत्तमोइण्णं ।
* एवरि अवत्तव्वसंकामयाणमुक्कस्से चडवीसमहोरते सादिरेये ।
काल भी सात, रात्रि-दिन प्रमाण होना चाहिए, क्योंकि उद्वेलना संक्रममें प्रवेश करनेवाले जीवोके अनुसार ही उसमें से निकलना न्याय प्राप्त है ?
समाधान — ऐसी आंशका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले सब जीवोंका उद्वेलनासंक्रममें प्रवेश करनेका कोई नियम नहीं है तथा उद्वेलनासंक्रम में प्रवेश करनेवाले सभी जीव निसत्त्व करते हैं ऐसा नियम भी नहीं स्वीकार किया गया है ।
* सम्यग्मिथ्यात्व भुजगार और अवक्तव्यसंक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ६५५७. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तरकाल एक समय है ।
६ ५५८. क्योंकि प्रकृत भुजगार और अवक्तव्यसंक्रम करनेवाले नाना जीवोंके एक समयका अन्तर करने के बाद पुनः नाना जीवोंके क्रम परिपाटीसे तदनन्तर समयमें उस प्रकार के परिणाम के माननेमें कोई विरोध नही: श्राता ।
* उत्कृष्ट अन्तर सात रात्रि - दिन है ।
§ ५५६. क्योंकि सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले जीवोंका जो उत्कृष्ट अन्तर हे उसके तद्भावकी सिद्धिं होनेमें कोई रुकावट नहीं आती। यहाँ इस सामान्य निर्देशसे अवक्तव्य संक्रामक जीवोंके भी प्रकृत अन्तरके प्रायः होनेपर वहाँपर प्रकारान्तर सम्भव है इसका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र आया है । यथा
* इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य संक्रामकका उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक चौवीस रात्रि-दिन है।