Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ३
गुणा । भुज० संका० संखे० गुणा I अप्प ० का ० संखे० गुणा । सम्म० - सम्मामि०अताyo १०४ णारयभंगो । बारसक०-भय-दुगु छा० अनंताणु ० ४भंगो । पुरिसवेद ० सव्वत्थोवा अवत्त० संका० । अवट्ठि ० संका ० संखे ० गुणा । भुज० संका ० असंखे ०गुणा । अप्प ० का ० संखे० गुणा । इत्थवेद-हस्स-रदि० सव्वत्थोवा अवत्त० संका० । भुज० संका • असंखे० गुणा । अप्प० संका० संखे० गुणा । णवुंसयवेद- अरदि-सोग० सव्त्रत्थोवा अवत्त ० संका० । अप्प० संका० असंखे० गुणा । भुज० संका ० संखे ० गुणा | एवं मणुस ० - मणु सिणी० । णत्ररि संखे० गुणं कायव्यं ।
६ ५६८. आणदादि जाव णत्रगेत्रजा त्ति मिच्छ० सम्म ०- सम्मा मि० चारसक०इत्थवे ० छण्णोक० देवोघं । अनंतापु०४ सन्वत्थोवा अवत्त० संका० । अबट्ठि० संका० असंखे० गुणा । भुज ० संका० असंखे० गुणा । अप्प० संका० संखे० गुणा । पुरिसवेद ० अपच्चक्खाणभंगो | णवुंस० इत्थीवेदभंगो । अणुद्दिसादि सव्बट्टा त्ति मिच्छ० सम्मामि०इत्थवे ० - बुंस० णत्थि अप्पाबहुअं । अनंतागु०४ सव्त्रत्थोवा भुज० संका० । अप्प०संका० असंखे० गुणा । बारसक० - पुरिसवेद - छण्णोक० आणदभंगो। णवरि सट्टे संखे कायन्त्रं । एवं जाव० ।
anurag समते भुजगारो समत्तो ।
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जीव संख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भङ्ग नारकियों के सम कषाय, भय और जुगुप्साका भङ्ग अनन्तानुबन्धीचतुष्क के समान है । पुरुषवेद के वक्तव्य - संक्रामकजीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतर संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं । स्त्रीवेद, हास्य और रतिके अवक्तव्य संक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगार संक्रामक जीव असंख्यात हैं । 'अल्पतरसंक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेद, अरति और शोकके अवक्तव्यसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतरसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगार संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है। कि इनमें संख्यातगुणा करना चाहिए ।
§ ५६८. श्रनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तक के देवोंमें मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यमिया, बारह कषाय, स्त्रीवेद और छह नोकषायोंका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके वक्तव्य संक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित संक्रामक जीव असंख्यात - गुगे हैं। उनसे भुजगारसंक्रामक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरसंक्रामक जीव संख्या - गुणे हैं । पुरुषवेदका भङ्ग अप्रत्याख्यानावरण के समान है। नपुंसकवेदका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसक वेदका अल्पबहुत्व नहीं है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके भुजगारसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतरसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । बारह कषाय, पुरुषवेद और छह नोकषायों का भङ्ग आनतकल्पके समान है । इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धि में संख्यातगुणा करना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
इस प्रकार अल्पबहुत्वके समाप्त होने पर भुजगार समाप्त हुआ ।