Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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- जयधवला सहिदे कसाय पाहुडे
* पुरिसवेदस्स सम्बत्थोवा अवक्तव्वसंकामया ।
५८९. सुगमं ।
[ बंधगो ६
*
दिसंकामया असंखेज्जगुणा ।
$ ५९०. कुदो ? पलिदोवमासंखेज भागमेत्तसम्माइट्टिजीवाणं पुरिसवेदावट्ठिद
संकमपजाएण परिणदाणमुवलंभादो ।
* भुजगार संकमया अतगुणा ।
$ ५९१. सगबंध कालब्भंतरसंचिदेइंदियरासिस्स गहणादो ।
* अप्पयर संकामया संखेज्जगुणा ।
९.५९२. पडिवक्खबंधगद्धा गुणगारस्स तप्यमाणत्तोवलंभादो । 'सयवेद-अरइ- सोगाणं सव्वत्थोवा भवत्तव्य संकामया ।
$ ५९३ . संखेजोवसामयजीवविसयत्तादो ।
* अप्पयरसंकामया अांतगुणा ।
$ ५९४. किं कारणं ? अंतोमुहुत्तमेत्तपडिवक्खबंधगद्धा संचि देइंदियरा सिस्स समवलंबणादो ।
* भुजगार संकामया संखेज्जगुणा ।
* पुरुषवेदके अवक्तव्य संक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं ।
९ ५८६. यह सूत्र सुगम है।
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* उनसे अवस्थित संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
५०. क्योंकि पुरुषवेदकी अवस्थित संक्रामक पर्यायरूपसे परिणत ऐसे पल्यके असंख्यातभागप्रमाण सम्यग्दृष्टि जीव उपलब्ध होते हैं ।
* उनसे भुजगार संक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं ।
५१. क्योंकि अपने बन्धकालके भीतर सञ्चित हुई एकेन्द्रिय जीवराशिको यहाँ पर ग्रहण किया है ।
* उनसे अन्पतर संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं ।
$ ५२. क्योंकि प्रतिपक्ष बन्धककालका गुणकार तत्प्रमाण उपलब्ध होता है ।
* नपुंसकवेद, अरति और शोकके अवक्तव्यसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं । ५३. क्योंकि संख्यात उपशामक जीव इस पदके विषय हैं ।
* उनसे अन्पतर संक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं ।
§ ५६४. क्योंकि अन्तर्मुहूर्त प्रमाण प्रतिपक्षबन्धक काल के भीतर सचित हुई एकेन्द्रिय जीवराशिका यहाँ पर अवलम्बन लिया है ।
* उनसे भुजगार संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं ।